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Saturday 13 September 2014

सृष्टि का रहस्य ..... इस सृष्टि की उत्पति कब हुई तथा यह सृष्टि कब तक रहेगी यह प्रश्न मानव मन को युगों से मथते रहे हैं। इनका उत्तर पाने के लिए लिए सबसे पहले काल को समझना पड़ेगा।...


सृष्टि का रहस्य .

सृष्टि का रहस्य .....

इस सृष्टि की उत्पति कब हुई तथा यह सृष्टि कब तक रहेगी यह प्रश्न मानव मन को युगों से मथते रहे हैं। इनका उत्तर पाने के लिए लिए सबसे पहले काल को समझना पड़ेगा। काल जिसके द्वारा हम घटनाओं-परिवर्तनों को नापते हैं, कबसे प्रारंभ हुआ?

भारतवर्ष में ऋषियों ने इस पर चिंतन किया, साक्षात्कार किया। ऋग्वेद के नारदीय सूक्त में सृष्टि उत्पत्ति के पूर्व की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा गया कि तब न सत् था न असत् था, न परमाणु था न आकाश, तो उस समय क्या था? तब न मृत्यु थी, न अमरत्व था, न दिन था, न रात थी। उस समय स्पंदन शक्ति युक्त वह एक तत्व था।

हमारे यहां ऋषियों ने काल की परिभाषा करते हुए कहा है "कलयति सर्वाणि भूतानि", जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड को, सृष्टि को खा जाता है। साथ ही कहा कि यह ब्रह्माण्ड एक बार बना और नष्ट हुआ, ऐसा नहीं होता। अपितु उत्पत्ति और लय पुन: उत्पत्ति और लय यह चक्र चलता रहता है।

श्रीमद्भागवत में प्रसंग आता है कि जब राजा परीक्षित महामुनि शुकदेव से पूछते हैं, काल क्या है? उसका सूक्ष्मतम और महत्तम रूप क्या है? तब इस प्रश्न का शुकदेव मुनि जो उत्तर देते हैं वह आश्चर्य जनक है, क्योंकि आज के आधुनिक युग में हम जानते हैं कि काल अमूर्त तत्व है। घटने वाली घटनाओं से हम उसे जानते हैं। आज से हजारों वर्ष पूर्व शुकदेव मुनि ने कहा- "विषयों का रूपान्तर" (बदलना) ही काल का आकार है। उसी को निमित्त बना वह काल तत्व अपने को अभिव्यक्त करता है। वह अव्यक्त से व्यक्त होता है।"

* काल गणना *

इस काल का सूक्ष्मतम अंश परमाणु है तथा महत्तम अंश ब्राहृ आयु है। इसको विस्तार से बताते हुए शुक मुनि उसके विभिन्न माप बताते हैं:-

2 परमाणु- 1 अणु - 15 लघु - 1 नाड़िका
3 अणु - 1 त्रसरेणु - 2 नाड़िका - 1 मुहूत्र्त
3 त्रसरेणु- 1 त्रुटि - 30 मुहूत्र्त - 1 दिन रात
100 त्रुटि- 1 वेध - 7 दिन रात - 1 सप्ताह
3 वेध - 1 लव - 2 सप्ताह - 1 पक्ष
3 लव- 1 निमेष - 2 पक्ष - 1 मास
3 निमेष- 1 क्षण - 2 मास - 1 ऋतु
5 क्षण- 1 काष्ठा - 3 ऋतु - 1 अयन
15 काष्ठा - 1 लघु - 2 अयन - 1 वर्ष

शुक मुनि की गणना से एक दिन रात में 3280500000 परमाणु काल होते हैं तथा एक दिन रात में 86400 सेकेण्ड होते हैं। इसका अर्थ सूक्ष्मतम माप यानी 1 परमाणु काल 1 सेकंड का 37968 वां हिस्सा।

महाभारत के मोक्षपर्व में अ. 231 में कालगणना - निम्न है:-

15 निमेष - 1 काष्ठा
30 काष्ठा -1 कला
30 कला- 1 मुहूत्र्त
30 मुहूत्र्त- 1 दिन रात

दोनों गणनाओं में थोड़ा अन्तर है। शुक मुनि के हिसाब से 1 मुहूर्त में 450 काष्ठा होती है तथा महाभारत की गणना के हिसाब से 1 मुहूर्त में 900 काष्ठा होती हैं। यह गणना की भिन्न पद्धतियों को परिलक्षित करती है।

यह सामान्य गणना के लिए माप है। पर ब्रह्माण्ड की आयु के लिए, ब्रह्माण्ड में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए बड़ी

कलियुग - 432000 वर्ष
2 कलियुग - द्वापरयुग - 864000 वर्ष
3 कलियुग - त्रेतायुग - 1296000 वर्ष
4 कलियुग - सतयुग - 1728000 वर्ष

चारों युगों की 1 चतुर्युगी - 4320000
71 चतुर्युगी का एक मन्वंतर - 306720000
14 मन्वंतर तथा संध्यांश के 15 सतयुग
का एक कल्प यानी - 4320000000 वर्ष

एक कल्प यानी ब्रह्मा का एक दिन, उतनी ही बड़ी उनकी रात इस प्रकार 100 वर्ष तक एक ब्रह्मा की आयु। और जब एक ब्रह्मा मरता है तो भगवान विष्णु का एक निमेष (आंख की पलक झपकने के काल को निमेष कहते हैं) होता है और विष्णु के बाद रुद्र का काल आरम्भ होता है, जो स्वयं कालरूप है और अनंत है, इसीलिए कहा जाता है कि काल अनन्त है।

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