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Monday 29 September 2014

my t.v program....

MY T.V. PROGRAM...

सिर दर्द दूर होता है बादाम रोगन के फायदे -- बोर्नविटा , कॉम्प्लान आदि पर हज़ारों रुपये खर्च करने की बजाये बादाम रोगन ख़रीदे।....


सिर दर्द दूर होता है
बादाम रोगन के फायदे --
बोर्नविटा , कॉम्प्लान आदि पर हज़ारों रुपये खर्च करने की बजाये बादाम रोगन ख़रीदे।
- सोने से पूर्व आँखों के चारों ओर बादाम रोगन की हल्की-हल्की मालिश करने से चेहरे पर निखार आता है और झुर्रियां नहीं पड़ती।
- सिर की खुश्की मिटाने के लिए सिर पर बादाम रोगन की मालिश करें।
- बाल न झड़े, इसके लिए भी सिर पर बादाम रोगन की मालिश करते हैं।
- रात में गाय के गर्म दूध में से चम्मच बादाम रोगन दाल कर पिने से दिमाग तेज़ होता है।
- बादाम रोगन गरम दूध में डाल कर पिने से कब्ज दूर होती है।
- नाक में दो - दो बूंद बादाम रोगन रात में सोते वक्त डालने से आँखों की ज्योति तेज़ होती है।ये नस्य दिमाग भी तेज़ करता है।
- बादाम रोगन के नस्य से सिर दर्द दूर होता है।
- यदि सुनने की शक्ति कम होने का भय हो तो बादाम रोगन की एक-एक बूंद प्रतिदिन डालें।
- आंवले के रस के साथ बादाम तेल की मालिश बालों का झड़ना, असमय सफेद होना, पतला होना और डैंड्रफ रोक सकती है।दो-तीन बूंद बादाम रोगन व एक चम्मच शहद की मालिश रोमकूप खोल चेहरे पर चमक लाती है।
- इसका सेवन तनाव कम करता है।
- ये हार्ट के लिए लाभदायक है।
- सर्दियों में शरीर का तापमान बनाए रखता है।
- छोटे बच्चों के लिए लाभदायक है।
- वजन घटाने में मदद करता है।
- गर्दन में दर्द होने पर इससे मालिश करने पर ठीक हो जाता है।
- इसकी सिर में मालिश करने से नींद अच्छी आती है।

Friday 26 September 2014

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अथ मंत्र:-.....


ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
अथ मंत्र:-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः 
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।"
॥ इति मंत्रः॥

"नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनी ॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनी ॥2॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणी ॥5॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

। श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् । 
ॐ तत्सत्

Thursday 25 September 2014

प्रश्न : घर में झगड़े होते है ? उत्तर :43 दिनों के लिए अपने सिर की तरफ पानी रखें फिर इसे बबूल के पेड़ में प्रवाहित करें.....


प्रश्न : घर में झगड़े होते है ?
उत्तर :43 दिनों के लिए अपने सिर की तरफ पानी रखें फिर इसे बबूल के पेड़ में प्रवाहित करें। 43 दिनों तक मंदिर में तीन-तीन केले दें। गंगाजल रखें और एक चाँदी के कटोरे में वर्गाकार चांदी का बर्तन रखें। किसी बढ़े या अपनी माँ जिससे आपको शिक्षा मिलती हो उनके पैरों को छू कर आर्शीवाद लेते रहें। यदि उत्तर-पश्चिमी दिशा में कोई बक्सा,संदूक़ या कुछ गंदगी रखी हो तो उसे तुरंत हटा दे।( गले में चंद्रा, केतु मथ्यम मंत्रा यंत्र पहनें)।

Tuesday 23 September 2014

पूर्वजन्म सन्तान फल *पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहिन,पति पत्नी- प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते है। सब मिलते है।....


पूर्वजन्म सन्तान फल
पूर्वजन्म सन्तान फल 

*पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में
माता-पिता, भाई-बहिन,पति पत्नी- प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते है। सब मिलते है।
क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ
देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है।
वेसे ही संतान के रूप में हमारा कोई पूर्व जन्म
का सम्बन्धी ही आकर जन्म लेता है।
जिसे शास्त्रों में चार प्रकार का बताया गया है।
1) ऋणानुबन्ध :- पूर्व जन्म का कोई एसा जीव
जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो तो वो आपके घर में संतान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो।
2) शत्रु पुत्र :-पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में संतान बनकर आयेगा औए बडा होने पर माता पिता से मारपीट झगडा या उन्हे सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार
से सताता ही रहेगा !
3) उदासीन :-इस प्रकार की सन्तान माता पिता को न तो कष्ट देती है ओर ना ही सुख।
विवाह होने पर यह माता- पिता से अलग होजाते है।
4)सेवक पुत्र :-पूर्व जन्म में यदि आपने
किसी की खूब सेवा कि है तो वह अपनी कि हुई सेवा का ऋण उतारने के लियेआपकी सेवा करने के लिये पुत्र/पुत्री बनकर आता है।

आप यह ना समझे कि यह सब बाते केवल मनुष्य पर ही लागु होती है। इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव भी आ सकता है। जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा कि है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है। यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसके दूध देना बन्द करने के पश्चात उसे घर से निकाल दिया हो तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी। यदि आपने किसी निरपराध जीव
को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा। इस लिये जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं करे। क्यों कि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे। उसे वह आपको सौ गुना करके देगी। यदि आपने किसी को एक रूपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रूपये जमा हो गये है। यदि आपने किसी का एक रूपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रूपये निकल गये।

Thursday 18 September 2014

प्रश्न : क्या आप बिना सोये रातें गुजारते है ? उत्तर : लाल सूती कपड़े में 2 किलो सौंफ अपने बेड रूम में रखें, दो किलो सफेद गुड़ लाल कपड़े में रखे।...


प्रश्न : क्या आप बिना सोये रातें गुजारते है ?
उत्तर : लाल सूती कपड़े में 2 किलो सौंफ अपने बेड रूम में रखें, दो किलो सफेद गुड़ लाल कपड़े में रखे। अपने सिरहाने पानी रखें और इस पानी को पेड़ पर बहा दे. कभी भी इस पानी को पीएं नहीं। सोते समय कभी भी अपना सिर पूर्व और उत्तरी दिशा की तरफ न रखें। तीन-तीन केले 43 दिनों तक मंदिर में दान करें, कुत्ते की सेवा करें। अपने गले में केतु मध्यम यंत्र अवश्य पहनें और यदि आपके कमर या पैरों में दर्द है तो अपने बाएं हाथ की तरफ सोना शुरू कर दें।

प्रश्न : क्या आप हमेशा डरते है ? उत्तर : अपने तकिएं में लाल रंग की फिटकरी रखें। ...


प्रश्न : क्या आप हमेशा डरते है ? 
उत्तर : अपने तकिएं में लाल रंग की फिटकरी रखें। मंदिर में नारियल और बादाम रखें या उन्हें पानी में भिगोएं। अपने कान को छिदवाएं(पियर्स) और उसमें सोना पहनें। अगर आपको जल्दी गुस्सा आता हो तो आप गले में सूर्य शनि मार्दंड यंत्र पहनें। यदि आप स्वभाव से रोगी हैं तो चंद्र राहु मार्दंड यंत्र पहने।

Tuesday 16 September 2014

तब इस विधि को प्रयोग में लाओ मैं पहले तुम्‍हें बताऊंगा कि शरीर को संवेदनशील कैसे बनाया जाए—खासकर नितंब को।...


तब इस विधि को प्रयोग में लाओ
मैं पहले तुम्‍हें बताऊंगा कि शरीर को संवेदनशील कैसे बनाया जाए—खासकर नितंब को।तुम्‍हारी जो नितंब है वह तुम्‍हारे शरीर का सब से संवेदनशील अंग है। उसे संवेदनहीन होना पड़ता है। क्‍योंकि तुम सारा दिन नितंब पर ही बैठे रहते हो। अगर वह बहुत संवेदनशील हो तो अड़चन होगी। तुम्‍हारे नितंब को संवेदनहीन होना जरूरी है। पाँव के तलवे जैसी उसकी दशा है। निरंतर उन पर बैठे-बैठे पता नहीं चलता कि तुम नितंबों पर बैठे हो। इसके पहले क्‍या कभी तुमने उन्‍हें महसूस किया है? अब कर सकते हो, लेकिन पहले कभी नहीं किया। और तुम पूरी जिंदगी उन पर ही बैठते हो—बिना जाने। उनका काम ही ऐसा है कि वे बहुत संवेदनशील नहीं हो सकते।तो पहले तो उन्‍हें संवेदनशील बनाना होगा। एक बहुत सरल उपाय काम में लाओ। यह उपाय शरीर के किसी भी अंग के लिए काम आ सकता है। तब शरीर संवेदनशील हो जाएगा। एक कुर्सी पर विश्राम पूर्वक, शिथिल होकर बैठो। आंखे बंद कर लो और शिथिल होकर कुर्सी पर बैठो। और बाएं हाथ को दाहिने हाथ पर महसूस करो। कोई भी चलेगा। बाएं हाथ को महसूस करो। शेष शरीर को भूल जाओ। और बांए हाथ को महसूस करो।तुम जितना ही उसे महसूस करोगे वह उतना ही भारी होगा। ऐसे बाएं हाथ को महसूस करते जाओ। पूरे शरीर को भूल जाओ। बाएं हाथ को ऐसे महसूस करो जैसे तुम बायां हाथ ही हो। हाथ ज्‍यादा से ज्‍यादा भारी होता जाए। जैसे-जैसे वह भारी होता जाए वैसे-वैसे उसे और भारी महसूस करो। और तब देखो कि हाथ में क्‍या हो रहा है।जो भी उत्‍तेजना मालूम हो उसे मन में नोट कर लो—कोई उत्‍तेजना। कोई झटका, कोई हलकी गति, सबको मन में नोट करते जाओ। इस तरह रोज तीन सप्‍ताह तक प्रयोग जारी रखो। दिन के किसी समय भी दस-पंद्रह मिनट तक यह प्रयोग करो। बाएं हाथ को महसूस करो और सारे शरीर को भूल जाओ।तीन सप्‍ताह के भीतर तुम्‍हें अपने एक नए बाएं हाथ का अनुभव होगा। और वह इतना संवेदनशील होगा, इतना जीवंत। और तब तुम्‍हें हाथ की सूक्ष्‍म और नाजुक संवेदनाओं का भी पता चलने लगेगा।जब हाथ सध जाए तो नितंब पर प्रयोग करो। तब यह प्रयोग करो: आंखें बंद कर लो और भाव करो कि सिर्फ दो नितंब है। तुम नहीं है। अपनी सारी चेतना को नितंब पर जाने दो। यही कठिन नहीं है। अगर प्रयोग करो तो यह आश्‍चर्यजनक है, अद्भुत है। उससे शरीर में जा जीवंतता का भाव आता है वह अपने आप में बहुत आनंददायक है। और जब तुम्‍हें अपने नितंबों का एहसास होने लगे, जब वे खूब संवेदनशील हो जाएं। जब भीतर कुछ भी हो उसे महसूस करने लगो, छोटी सी हलचल, नन्‍हीं सी पीड़ा भी महसूस करने लगो। तब तुम निरीक्षण कर सकते हो। जान सकते हो। तब समझो कि तुम्‍हारी चेतना नितंबों से जुड़ गयी।पहले हाथ से प्रयोग शुरू करो, क्‍योंकि हाथ बहुत संवेदनशील है। एक बार तुम्‍हें यह भरोसा हो जाए कि तुम अपने हाथ को संवेदनशील बना सकते हो। तब वहीं भरोसा तुम्‍हें तुम्‍हारे नितंब को संवेदनशील बनाने में मदद करेगा। और तब इस विधि को प्रयोग में लाओ। इसलिए इस विधि को प्रयोग में लाओ। इसलिए इस विधि में प्रवेश करने के लिए तुम्‍हें कम से कम छह सप्‍ताह की तैयारी करनी चाहिए। तीन सप्‍ताह हाथ के साथ और तीन सप्‍ताह नितंबों के साथ। उन्‍हें ज्‍यादा से ज्‍यादा संवेदनशील बनाना है।बिस्‍तर पर पड़े-पड़े शरीर को बिलकुल भूल जाओ, इतना ही याद रखो कि सिर्फ दो नितंब बचे है। स्‍पर्श अनुभव करो—बिछावन की चादर का, सर्दी का या धीरे-धीरे आती हुई उष्‍णता का। अपने स्‍नान टब में पड़े-पड़े शरीर को भूल जाओ। नितंबों को ही स्‍मरण रखो।उन्‍हें महसूस करो। दीवार से नितंब सटाकर खड़े हो जाओ और दीवार की ठंडक को महसूस करो। अपनी प्रेमिका, या पति के साथ नितंब से नितंब मिलाकर खड़े जाओ और एक-दूसरे को नितंबों के द्वारा महसूस करो। यह विधि महज तुम्‍हारे नितंब को पैदा करने के लिए है। उन्‍हें उस स्‍थिति में लाने के लिए जहां वे महसूस करने लगें।और जब इस विधि को काम में लाओ: ‘’पाँवों या हाथों को सहारा दिए बिना…..।‘’जमीन पर बैठो, पाँवों या हाथों के सहारे के बिना सिर्फ नितंबों के सहारे बैठो। इसमें बुद्ध का पद्मासन काम करेगा या सिद्घासन या कोई मामूली आसन भी चलेगा। लेकिन अच्‍छा होगा कि हाथ का उपयोग न करो। सिर्फ नितंबों के सहारे रहो। नितंबों पर ही बैठो। और तब क्‍या करो? आंखे बद कर लो और नितंबों का जमीन के साथ स्‍पर्श महसूस करो। और चूंकि नितंब संवेदनशील हो चूके है। इसलिए तुम्‍हें पता चलेगा कि एक नितंब जमीन को अधिक स्‍पर्श कर रहा है। उसका अर्थ हुआ कि तुम एक नितंब पर ज्‍यादा झुके हुए हो। और दूसरा जमीन से कम सटा हुआ है। और तब दूसरे नितंब पर बारी-बारी से झुकते जाओ और तब धीरे-धीरे संतुलन लाओ।संतुलन लाने का अर्थ है कि तुम्‍हारे दोनों नितंब एक सा अनुभव करते है। दोनों के ऊपर तुम्‍हारा भार बिलकुल समान हो। और तब तुम्‍हारे नितंब संवेदनशील हो जाएंगे तो यह संतुलन कठिन नहीं होगा। तुम्‍हें उसका एहसास होगा। और एक बार दोनों नितंब संतुलन में आ जाएं तो तुम केंद्र पर पहूंच गए। उस संतुलन में तुम अचानक अपने नाभि केंद्र पर पहुंच जाओगे और भीतर केंद्रित हो जाओगे। तब तुम अपने नितंबों को भूल जाओगे। अपने शरीर को भूल जाओगे। तब तुम अपने आंतरिक केंद्र पर स्‍थित होओगे।इसी वजह से मैं कहता हूं कि केंद्र नहीं, केंद्रित होना महत्‍वपूर्ण है। चाहे वह घटना ह्रदय में या सिर म या नितंब में घटित हो, उसका महत्‍व नहीं है। तुमने बुद्धों को बैठे देखा होगा। तुमने नहीं सोचा होगा कि वे अपने नितंबों का संतुलन किए बैठे है। किसी मंदिर में जाओ और महावीर को बैठे देखो या बुद्ध को बैठे देखो, तुमने नहीं सोचा होगा कि यह बैठना नितंबों का संतुलन भर है। यह वही है। और जब असंतुलन न रहा तो संतुलन से तुम केंद्रित हो गए। 

Monday 15 September 2014

जिससे घर में बरकत बनी रह सके क्या आपकी जेब मे पैसा नही टिकता तो कीजिए ये उपाय धन कमाने की इच्छा हर मन में होती है। ...


जिससे घर में बरकत बनी रह सके
क्या आपकी जेब मे पैसा नही टिकता तो कीजिए ये उपाय

धन कमाने की इच्छा हर मन में होती है। लेकिन मनचाहा पैसा कमाने के बाद भी अगर पैसा टिकता नहीं है तो हमें अपनी दिनचर्या पर ध्यान देना चाहिए।

छोटी-छोटी बातें हमारे संस्कार के रूप में भी आदतों में शामिल होनी चाहिए। यह उपाय टोटके नहीं है बल्कि बुजुर्गों के अनुभवों से प्राप्त उपयोगी संकलन है।

* अगर पर्याप्त पैसा कमाने के बाद भी धन संचय नहीं हो रहा हो, तो काले कुत्ते को प्रत्येक शनिवार को कड़वे तेल (सरसों के तेल) से चुपड़ी रोटी खिलाएं।

* क्या ना करें- शाम के समय सोना, पढ़ना और भोजन करना निषिद्ध है। सोने से पूर्व पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिए, किंतु गीले पैर नहीं सोना चाहिए। इससे धन का नाश होता है।

* रात में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है। अत: समृद्धि चाहने वालों को तथा जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात के भोजन में नहीं करना चाहिए।

* भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए

* सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।

* घर में देवी-देवताओं पर चढ़ाए गए फूल या हार के सूख जाने पर भी उन्हें घर में रखना अलाभकारी होता है।

* अपने घर में पवित्र नदियों का जल संग्रह कर के रखना चाहिए। इसे घर के ईशान कोण में रखने से अधिक लाभ होता है।
तिजोरी में हम अपना पैसा, आभूषण और अन्य बेशकीमती वस्तुएं रखते हैं। अत: यह जगह बहुत ही पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होनी चाहिए, जिससे घर में बरकत बनी रह सके और पैसों की कभी कमी न आए। यदि तिजोरी के आसपास नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हों तो उस घर में पैसों कमी रहेगी। धन में बरकत बनाए रखने के लिए शास्त्रों में कुछ उपाय बताए गए हैं।

तिजोरी हमेशा धन से भरी रहे, धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा सदैव आप पर बनी रहे, इसके लिए एक छोटा सा उपाय अपनाएं। शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश रिद्धि और सिद्ध के दाता है। कोई भी भक्त नित्य श्रीगणेश का ध्यान करता है तो उसे कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं सताती। श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय हैं।

प्रतिदिन गणेशजी की विधिवत पूजा करें। पूजन में गणेशजी के प्रतीक स्वरूप सुपारी रखी जाती है। पूजा में उपयोग की गई सुपारी में श्रीगणेश का वास होता है। बस यही सुपारी पूजा पूर्ण होने के बाद अपनी तिजोरी में रख दें। इस सुपारी को तिजोरी में रखने से तिजोरी के आसपास सकारात्मक और पवित्र ऊर्जा सक्रिय रहेगी जो नकारात्मक शक्तियों को दूर रखेगी।

घर में सुख-शान्ति के लिए - सुबह उठ कर सबसे पहले घर की मालकिन अगर एक लोटा पानी घर के मुख्य द्वार पर डालती है तो घर में लक्ष्मी देवी के आने का रास्ता खुल जाता हैं।.....


घर में सुख-शान्ति के लिए
- सुबह उठ कर सबसे पहले घर की मालकिन अगर एक लोटा पानी घर के मुख्य द्वार पर डालती है तो घर में लक्ष्मी देवी के आने का रास्ता खुल जाता हैं।
-अगर आप चाहते हैं की घर में सुख शान्ति बनी रहे तो हर एक अमावास के दिन घर की अच्छी तरह सफाई करके (बेकार सामान घर में न रखें) कच्ची लस्सी का छिट्टा देकर ५ अगरबत्ती जलाइए।
-महीने में २ बार किसी भी दिन घर में उपला जलाकर लोबान व गूगल की धुनी देने से घर में उपरी हवा का बचाव रहता हैं तथा बीमारी दूर होती है।
-आपके घर में अगर अग्नि कोण में पानी की टंकी रखी हो तो घर में कर्जा व बीमारी कभी समाप्त नही होती है इससे बचने के लिए इस कोने में एक लाल बल्ब लगा दें जो हर वक्त जलता रहे।
-नमक को कभी भी खुला न रखें।
-घर में सुख-शान्ति न हो तो पीपल पर सरसों के तेल का दीया जलाना और जला कर काले माह (उड़द ) के तीन दाने दीये में डालना चाहिए, ऐसा तीन शनिवार शाम को करें।
-दुर्घटना या सर्जरी का भय हो तो तांबें के बर्तन में गुड़ हनुमान जी के मन्दिर में देने से बचाव होता है और अगर सरसों के तेल का दीया वहीं जलाये और वहीं बैठ कर हनुमान चालीसा पढ़े और हलवा चढाये तो काफ़ी बचाव होता है, ऐसा चार मंगलवार रात्रि करें।
-बहन भाईओं से कोई समस्या हो तो सवा किलो गुड़ जमीन में दबाने से समझौता होता है, ऐसा मंगलवार को करें।
-बच्चों की पढ़ाई के लिए सवा मीटर पीले कपडें में २ किलो चने की दाल बांधकर लक्ष्मी-नारायण जी के मन्दिर में चढाये, ऐसा पाँच शाम वीरवार को करें।
-कमर, गर्दन में तकलीफ रहती हो तो दोनों पैरों के अंगूठे में काला सफ़ेद धागा बांधें।
घर में पैसा रखने वाली अलमारी का मुंह उत्तर की तरफ़ रखे, ऐसा करने से घर में लक्ष्मी बदती है।
-किसी भी रोज़ संध्याकाल में गाय को कच्चा ढूध मिटटी के किसी बर्तन में भरकर बाएँ हाथ से नज़र लगे बच्चे के सर से सात बार उतारकर चौराहे पर रख आयें या किसी कुत्ते को पिला दे, नज़र दोष दूर हो जायेगा।
-घर के किसी भी कार्य के लिए निकलते समय पहले विपरीत दिशा में 4 पग जावें, इसके बाद कार्य पर चले जाएँ, कार्य जरूर बनेगा।
-परिवार में सुख-शान्ति और सम्रद्धि के लिए प्रतिदिन प्रथम रोटी के चार बराबर भाग करें, एक गाय को, दूसरा काले कुत्ते को, तीसरा कौए को और चौथा चौराहे पर रख दें।
-हल्दी की 7 साबुत गाठें 7 गुड़ की डलियाँ, एक रूपये का सिक्का किसी पीले कपड़े में वीरवार को बांधकर रेलवे लाईन के पार फेंक दें, फेंकते समय अपनी कामना बोलें, इच्छा पूर्ण होने की सम्भावना हो जायेगी।
-घर में सुख-शान्ति के लिए मिट्टी का लाल रंग का बन्दर, जिसके हाथ खुले हो, घर में सूर्य की तरफ़ पीठ करके रखें, ऐसा रविवार को करें।
-चांदी के बर्तन में केसर घोल कर माथे पर टीका लगाना, सुख-शान्ति सम्रद्धि और प्रसद्धि देता है, यह प्रयोग वीरवार को करें।
-शादी न हो रही हो या पढ़ाई में दिक्कत हो तो पीले फूलों के दो हार लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में चढाये, आपका काम जरूर होगा, यह प्रयोग वीरवार शाम को करें।
-कंजकों को बुधवार के दिन साबुत बादाम, जो मन्दिर के बाहर बैठीं हों, देना चाहिए इससे घर की बीमारी दूर होती है।
-अगर किसी को अपनी नौकरी में तबादले या स्थानांतर को लेकर कोई समस्या है तो ताम्बे की गडवी/ लोटे में लाल मिर्ची के बीज डालकर सूर्य को चढाने से समस्या दूर होती है। सूर्य को यह जल लगातार 21 दिनों तक चढाये।

Sunday 14 September 2014

भाग्य में बाधा आती है. आपकी कुंडली में सप्तम भाव लग्न अनुसार : जीवन साथी का साथ ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भाग्य बलवान होने से जीवन में मुश्किलें कम आती हैं....


भाग्य में बाधा आती है.
आपकी कुंडली में सप्तम भाव लग्न अनुसार : जीवन साथी का साथ 

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भाग्य बलवान होने से जीवन में मुश्किलें कम आती हैं, व्यक्ति को अपने कर्मों का फल जल्दी प्राप्त होता है. भाग्य का साथ मिले तो व्यक्ति को जीवन का हर सुख प्राप्त होता. यही कारण है कि लागों में सबसे ज्यादा इसी बात को लेकर उत्सुकता रहती है कि उसका भाग्य कैसा होगा. कुण्डली के भाग्य भाव में सातवें घर का स्वामी बैठा होने पर व्यक्ति का भाग्य कितना साथ देता है यहां इसकी चर्चा की जा रही है. 

मेष लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in aries ascendant) 
मेष लग्न की कुण्डली में सातवें घर में तुला राशि होती है जिसका स्वामी शुक्र ग्रह होता है. शुक्र मेष लग्न में दूसरे घर का भी स्वामी होता है अत: दो मारक भावों का स्वामी होने के कारण पूर्ण मारकेश होता है. मेष लग्न में भग्य स्थान का स्वामी गुरू होता है जो शुक्र के शत्रु ग्रह की राशि होती है. 
शत्रु ग्रह की राशि में बैठा शुक्र भाग्य को कमज़ोर बनाता है. भाग्य भाव में शुक्र के साथ बुध भी हो तो यह भाग्य को बहुत ही कमज़ोर बना देता है. 
मेष लग्न वालों की कुण्डली में सप्तमेश भाग्य भाव में बैठा हो तो व्यक्ति को जीवनसाथी के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए. जीवनसाथी से सहयोग एवं सलाह लेकर कार्य करना भी फायदेमंद होता है. 

वृष लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Taurus ascendant) 
वृष लग्न की कुण्डली में सप्तमेश मंगल होता है. वृष लग्न में भाग्य स्थान में बैठा मंगल अपनी उच्च राशि में होता है फिर भी यह व्यक्ति के भाग्य में बाधक होता है. विशेषतौर पर विवाह के पश्चात भाग्य में अधिक अवरोध आता है. लेकिन, मंगल कुण्डली में यदि 10'से 13'तक हो तो शुभ फल देता है. मंगल यदि नवम भाव में नीच गुरू के साथ हो तो यह भाग्य को अधिक कमज़ोर बनाता है. 

कर्क लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Cancer ascendant) 
कर्क लग्न की कुण्डली में शनि सप्तम भाव के स्वामी होते हैं. कर्क लग्न में शनि अष्टमेश भी होते हैं अत: नवम भाव में सम राशि में होने पर भी भाग्योदय में सहायक नहीं होते हैं. हालांकि कुण्डली में 13'से 20' के बीच में होने पर शानि भाग्य को बलवान बना सकते हैं. अन्य स्थितियों में शनि से अधिक शुभ फल की उम्मीद करना फायदेमंद नहीं होगा. 

सिंह लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Leo ascendant) 
सिंह लग्न की कुण्डली में सातवें घर में कुम्भ राशि होती है इसलिए सिंह लग्न में शनि को सप्तमेश माना जाता है. भाग्य स्थान में शनि होने पर व्यक्ति के भाग्य में रूकावट आती रहती है विशेषतौर पर विवाह के पश्चात शनि भाग्योदय में सहायता नहीं करते हैं. इसका कारण यह है कि सिंह लग्न स्थिर लग्न है और स्थिर लग्न में नवम भाव बाधक होता है. बाधक भाव में नीच शनि होने की वजह से भाग्य कमज़ोर हो जाता है. 

कन्या लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Virgo ascendant) 
गुरू कन्या लग्न में सप्तमेश होते हैं. कन्या लग्न की कुण्डली में गुरू भाग्य भाव में स्थित हो तो शुभ फल देते हैं यानी भाग्य को बल मिलता है. हालांकि नवम भाव में गुरू अपने शत्रु राशि में होते हैं तथा कन्या लग्न में गुरू को केन्द्रधिपति दोष लगता है. कन्या लग्न की कुण्डली में गुरू बुध के साथ भाग्य भाव में होने पर भाग्य बहुत बलवान हो जाता है. इसके विपरीत मंगल के साथ गुरू होने पर भाग्य में बाधा आती है. 

तुला लग्न में सप्तम भाव का स्वामी (The lord of the seventh house in Libra ascendant) 
तुला लग्न में सप्तमेश मंगल होता है. मंगल तुला लग्न में दूसरे घर का भी स्वामी होता है अत: दोनों मारक भावों का स्वामी होने के कारण भाग्योदय में मंगल बाधक होता है. तुला लग्न में नवम नवम भाव में मंगल शत्रु राशि में भी होता है अत: दोनों ही तरह से मंगल को भाग्य में अवरोध कहा जाता है. मंगल के साथ यदि अन्य कोई ग्रह हो तो शत्रुओं के कारण भाग्य में बाधा आती रहती है. ज्योतिषशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार तुला लग्न में भाग्य भाव में बैठा मंगल भाग्य में बाधक होते हुए भी कुछ स्थितियों में शुभ फल दे सकता है 

वृश्चिक लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in scorpio ascendant) 
शुक्र वृश्चिक लग्न में सप्तमेश होते हैं. शुभ ग्रह होने के बावजूद भी भाग्य स्थान में बैठने पर शुक्र भाग्य को बलवान बनाने में अक्षम होते हैं क्योंकि, स्थिर लग्न में नवम भाव बाधाक भाव होता है. बाधक भाव में शुक्र होने के कारण शुक्र का शुभ प्रभाव कम हो जाता है. इस स्थिति में यदि शुक्र की बुध के साथ युति हो तो भाग्य में अधिक बाधाएं आएंगी. 

धनु लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in sagittarius ascendant) 
धनु लग्न में बुध सातवें घर का स्वामी होता है. धनु लग्न में नवम भाव में सिंह राशि होती है जो बुध की मित्र राशि है. मित्र राशि में बुध केन्द्राधिपति दोष के बावजूद शुभ फल देगा. इससे विवाह के पश्चात व्यक्ति का भाग्य अधिक उन्नत होगा. बुध शुक्र युति होने पर भाग्य में अवरोध आ सकता है. 

मकर लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in Capricorn ascendant) 
मकर लग्न में सप्तम भाव में कर्क राशि होती है. कर्क राशि का स्वामी चन्द्र होता है. मकर लग्न की कुण्डली में बुध नवम भाव में शत्रु राशि में होता है फिर भी यह शुभ फल देता है. इस लग्न में चन्द्र केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित होने के बावजूद व्यक्ति के भाग्य को मजबूत बनाता है. मकर लग्न में सूर्य यदि भाग्य स्थान में होगा तो भाग्योदय में बाधा आ सकती है. 

कुम्भ लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in Aquarius ascendant) 
कुम्भ लग्न की कुण्डली में सातवें घर में सिंह राशि होती है अत: कुम्भ में सूर्य को सप्तमेश कहा गया है. सप्तमेश सूर्य कुम्भ लग्न में नवम भाव में होने पर वह अपनी नीच राशि तुला में होता है. इसके अलावा स्थिर लग्न में नवम भाव बाधक स्थान होता है. इन दोनों कारणों से कुम्भ लग्न में सप्तमेश सू्र्य भाग्य भाव में बैठकर भाग्य को बलवान बनाने में अक्षम होता है. सूर्य के साथ चन्द्र यदि भाग्य भाव में बैठा हो तो यह अधिक बाधक होता है. 

मीन लग्न में सप्तम भाव के स्वामी (The lord of the seventh house in Pisces ascendant) 
मीन लग्न की कुण्डली में कन्या राशि सातवें घर में होती है. इस राशि का स्वामी बुध होता है. मीन लग्न में भाग्य स्थान में वृश्चिक राशि होती है. वृश्चिक में बुध नीच का होता है, इसलिए भाग्य भाव में बैठा बुध भाग्य को बलवान नहीं बना पाता है. दूसरी बात यह है कि मीन लग्न में बुध को केन्द्राधिपति दोष लगता है इसलिए भी बुध का भाग्य भाव में होना व्यक्ति के लिए कम शुभ फलदायी होता है. 

Saturday 13 September 2014

भाग्योदय के लिए -यदि इस गोमती चक्र को लाल सिन्दूर की डिब्बी में घर में रखे, तो घर....


भाग्योदय के लिए
-यदि इस गोमती चक्र को लाल सिन्दूर की डिब्बी में घर में रखे, तो घर
में सुख-शान्ति बनी रहती है ।
-यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो, तो दो गोमती चक्र लेकर घर के
मुखिया के ऊपर से घुमाकर आग में डाल दे, तो घर से भूत-प्रेत
का उपद्रव समाप्त हो जाता है ।
- यदि घर में बिमारी हो या किसी का रोग शान्त नहीं हो रहा हो तो एक
गोमती चक्र लेकर उसे चाँदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बाँध दें,
तो उसी दिन से रोगी का रोग समाप्त होने लगता है ।
- व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बाँधकर ऊपर चौखट
पर लटका दें, और ग्राहक उसके नीचे से निकले, तो निश्चय ही व्यापार
में वृद्धि होती है ।
-प्रमोशन नहीं हो रहा हो, तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मन्दिर में
शिवलिंग पर चढ़ा दें, और सच्चे मन से प्रार्थना करें । निश्चय
ही प्रमोशन के रास्ते खुल जायेंगे ।
-पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में
“हलूं बलजाद” कहकर फेंक दें, मतभेद समाप्त हो जायेगा ।
- पुत्र प्राप्ति के लिए पाँच गोमती चक्र लेकर किसी नदी या तालाब में
“हिलि हिलि मिलि मिलि चिलि चिलि हुं ” पाँच बार बोलकर विसर्जित करें

-यदि बार-बार गर्भ नष्ट हो रहा हो, तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में
बाँधकर कमर में बाँध दें ।
-यदि शत्रु अधिक हो तथा परेशान कर रहे हो, तो तीन गोमती चक्र
लेकर उन पर शत्रु का नाम लिखकर जमीन में गाड़ दें ।
- कोर्ट-कचहरी में सफलता पाने के लिये, कचहरी जाते समय घर के
बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर अपना दाहिना पैर रखकर जावें ।
-भाग्योदय के लिए तीन गोमती चक्र का चूर्ण बनाकर घर के बाहर
छिड़क दें ।
- राज्य-सम्मान-प्राप्ति के लिये दो गोमती चक्र किसी ब्राह्मण
को दान में दें ।
- तांत्रिक प्रभाव की निवृत्ति के लिये बुधवार को चार गोमती चक्र
अपने सिर के ऊपर से उबार कर चारों दिशाओं में फेंक दें ।
- चाँदी में जड़वाकर बच्चे के गले में पहना देने से बच्चे को नजर
नहीं लगती तथा बच्चा स्वस्थ बना रहता है ।
- दीपावली के दिन पाँच गोमती चक्र पूजा-घर में स्थापित कर नित्य
उनका पूजन करने से निरन्तर उन्नति होती रहती है ।
- रोग-शमन तथा स्वास्थ्य-प्राप्ति हेतु सात गोमती चक्र अपने
ऊपर से उतार कर किसी ब्राह्मण या फकीर को दें ।
- 11 गोमती चक्रों को लाल पोटली में बाँधकर तिजोरी में
अथवा किसी सुरक्षित स्थान पर सख दें, तो व्यापार
उन्नति करता जायेगा

सृष्टि का रहस्य ..... इस सृष्टि की उत्पति कब हुई तथा यह सृष्टि कब तक रहेगी यह प्रश्न मानव मन को युगों से मथते रहे हैं। इनका उत्तर पाने के लिए लिए सबसे पहले काल को समझना पड़ेगा।...


सृष्टि का रहस्य .

सृष्टि का रहस्य .....

इस सृष्टि की उत्पति कब हुई तथा यह सृष्टि कब तक रहेगी यह प्रश्न मानव मन को युगों से मथते रहे हैं। इनका उत्तर पाने के लिए लिए सबसे पहले काल को समझना पड़ेगा। काल जिसके द्वारा हम घटनाओं-परिवर्तनों को नापते हैं, कबसे प्रारंभ हुआ?

भारतवर्ष में ऋषियों ने इस पर चिंतन किया, साक्षात्कार किया। ऋग्वेद के नारदीय सूक्त में सृष्टि उत्पत्ति के पूर्व की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा गया कि तब न सत् था न असत् था, न परमाणु था न आकाश, तो उस समय क्या था? तब न मृत्यु थी, न अमरत्व था, न दिन था, न रात थी। उस समय स्पंदन शक्ति युक्त वह एक तत्व था।

हमारे यहां ऋषियों ने काल की परिभाषा करते हुए कहा है "कलयति सर्वाणि भूतानि", जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड को, सृष्टि को खा जाता है। साथ ही कहा कि यह ब्रह्माण्ड एक बार बना और नष्ट हुआ, ऐसा नहीं होता। अपितु उत्पत्ति और लय पुन: उत्पत्ति और लय यह चक्र चलता रहता है।

श्रीमद्भागवत में प्रसंग आता है कि जब राजा परीक्षित महामुनि शुकदेव से पूछते हैं, काल क्या है? उसका सूक्ष्मतम और महत्तम रूप क्या है? तब इस प्रश्न का शुकदेव मुनि जो उत्तर देते हैं वह आश्चर्य जनक है, क्योंकि आज के आधुनिक युग में हम जानते हैं कि काल अमूर्त तत्व है। घटने वाली घटनाओं से हम उसे जानते हैं। आज से हजारों वर्ष पूर्व शुकदेव मुनि ने कहा- "विषयों का रूपान्तर" (बदलना) ही काल का आकार है। उसी को निमित्त बना वह काल तत्व अपने को अभिव्यक्त करता है। वह अव्यक्त से व्यक्त होता है।"

* काल गणना *

इस काल का सूक्ष्मतम अंश परमाणु है तथा महत्तम अंश ब्राहृ आयु है। इसको विस्तार से बताते हुए शुक मुनि उसके विभिन्न माप बताते हैं:-

2 परमाणु- 1 अणु - 15 लघु - 1 नाड़िका
3 अणु - 1 त्रसरेणु - 2 नाड़िका - 1 मुहूत्र्त
3 त्रसरेणु- 1 त्रुटि - 30 मुहूत्र्त - 1 दिन रात
100 त्रुटि- 1 वेध - 7 दिन रात - 1 सप्ताह
3 वेध - 1 लव - 2 सप्ताह - 1 पक्ष
3 लव- 1 निमेष - 2 पक्ष - 1 मास
3 निमेष- 1 क्षण - 2 मास - 1 ऋतु
5 क्षण- 1 काष्ठा - 3 ऋतु - 1 अयन
15 काष्ठा - 1 लघु - 2 अयन - 1 वर्ष

शुक मुनि की गणना से एक दिन रात में 3280500000 परमाणु काल होते हैं तथा एक दिन रात में 86400 सेकेण्ड होते हैं। इसका अर्थ सूक्ष्मतम माप यानी 1 परमाणु काल 1 सेकंड का 37968 वां हिस्सा।

महाभारत के मोक्षपर्व में अ. 231 में कालगणना - निम्न है:-

15 निमेष - 1 काष्ठा
30 काष्ठा -1 कला
30 कला- 1 मुहूत्र्त
30 मुहूत्र्त- 1 दिन रात

दोनों गणनाओं में थोड़ा अन्तर है। शुक मुनि के हिसाब से 1 मुहूर्त में 450 काष्ठा होती है तथा महाभारत की गणना के हिसाब से 1 मुहूर्त में 900 काष्ठा होती हैं। यह गणना की भिन्न पद्धतियों को परिलक्षित करती है।

यह सामान्य गणना के लिए माप है। पर ब्रह्माण्ड की आयु के लिए, ब्रह्माण्ड में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए बड़ी

कलियुग - 432000 वर्ष
2 कलियुग - द्वापरयुग - 864000 वर्ष
3 कलियुग - त्रेतायुग - 1296000 वर्ष
4 कलियुग - सतयुग - 1728000 वर्ष

चारों युगों की 1 चतुर्युगी - 4320000
71 चतुर्युगी का एक मन्वंतर - 306720000
14 मन्वंतर तथा संध्यांश के 15 सतयुग
का एक कल्प यानी - 4320000000 वर्ष

एक कल्प यानी ब्रह्मा का एक दिन, उतनी ही बड़ी उनकी रात इस प्रकार 100 वर्ष तक एक ब्रह्मा की आयु। और जब एक ब्रह्मा मरता है तो भगवान विष्णु का एक निमेष (आंख की पलक झपकने के काल को निमेष कहते हैं) होता है और विष्णु के बाद रुद्र का काल आरम्भ होता है, जो स्वयं कालरूप है और अनंत है, इसीलिए कहा जाता है कि काल अनन्त है।

शादी किस उम्र में होगी इस विषय में हाथों की लकीरें को विधाता का लेख कहा जाता है। इस लेख को पढ़ना जिसने सीख लिया उनके लिए भूत, भविष्य वर्तमान खुली किताब की तरह होता है। इन रेखाओं में विधाता ने जीवन की छोटी से छोटी घटनाओं लिख रखा है....


शादी किस उम्र में होगी इस विषय में
हाथों की लकीरें को विधाता का लेख कहा जाता है। इस लेख को पढ़ना जिसने सीख लिया उनके लिए भूत, भविष्य वर्तमान खुली किताब की तरह होता है। इन रेखाओं में विधाता ने जीवन की छोटी से छोटी घटनाओं लिख रखा है, आप चाहें तो इनसे भाग्य, धन, जीवन, विवाह सभी प्रश्न का हल जान सकते हैं।

विवाह किसी भी व्यक्ति के जीवन में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। दार्शनिकों एवं विद्वानों ने तो कहा ही है शास्त्र भी कहता है कि विवाह के पश्चात व्यक्ति दो भागों में विभक्त हो जाता है अथवा व्यक्ति का दूसरा जीवन शुरू होता है। ज्योतिषशास्त्र में जब किसी व्यक्ति के जीवन की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है तब व्यक्ति के जीवन को दो हिस्सों में बांटकर उनका विश्लेषण किया जाता है प्रथम विवाह पूर्व और दूसरा विवाह पश्चात। आपने भी देखा होगा कुछ लोग विवाह से पहले उन्नत स्थति में रहते हैं और शादी के पश्चात उनका जीवन मुश्किल दौर से गुजरने लगता है इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो विवाह से पहले परेशानी एवं मुश्किलों हालातों का सामना करते रहते हैं और विवाह के बाद उनका जीवन कामयाब और खुशहाल हो जाता है।

आप भी अगर शादी का सपना संजोये बैठे हैं और जानने को उत्सुक हैं कि आपकी शादी कब होगी और आपकी शादी शुदा जिन्दग़ी कैसी रहेगी तो इसके लिए आपको अधिक परेशान होने की जरूरत नहीं है आप अपनी हथेली से प्रश्न पूछ कर देखिये आपको जवाब जरूर मिल जाएगा अगर आप हथेली में मौजूद रेखाओं को पढ़ना जानते हैं। हस्तरेखा विशेषज्ञ बताते हैं कि हाथ में विवाह के लिए और वैवाहिक स्थिति के लिए दो रेखाओं से विचार किया जाना चाहिए एक तो बुध पर्वत के नीचे निकलने वाली रेखा से और दूसरी शुक्र पर्वत पर मौजूद रेखा से।

आमतौर पर इस संदर्भ में बुध पर्वत की रेखा को ही महत्वपूर्ण और सर्वमान्य माना जाता है आप भी इसी रेखा को विवाह के संदर्भ में देख सकते हैं। इस पर्वत पर अगर कई रेखाएं दिखाई दे रही हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि सभी रेखा शादी (Marriage Line) की है अर्थात आपकी उतनी शादी होगी। इस पर्वत पर दिखने वाली सभी रेखाओं में से वही रेखा विवाह रेखा होगी जो सबसे गहरी और लम्बी होगी अन्य रेखा किसी के साथ प्रेम सम्बन्ध को दर्शाती है।

शादी किस उम्र में होगी इस विषय में यह कहा जाता है कि बुध पर्वत के नीचे निकलने वाली विवाह रेखा (Line of marriage) अगर हृदय रेखा से मिली होती है अथवा समीप होती है तो शादी कम उम्र में होती है, उम्र के हिसाब से कहें तो इस स्थिति में 14-20 वर्ष या इससे भी कम उम्र में आपकी शादी हो जाती है। यह रेखा अगर बुध पर्वत के मध्य तक दिखाई देती है तो आपकी उम्र समान्य आयु में अर्थात 21-28 वर्ष की आयु में होती है लेकिन अगर यह रेखा बुध पर्वत के एक तीहाई यानी आध से कम आती है तो शादी काफी देर से होती है यानी 28 से 35 वर्ष की आयु में जाकर ही आपके सिर पर सेहरा सजता है। गौरतलब बात है कि अगर विवाह रेखा के समानांतर एक वैसी ही रेखा चल रही है तो इसका अर्थ है कि आपके सिर पर दो बार सेहरा सजना लिखा है।

यह तो रही है कि आपकी शादी कब होगी। लेकिन इससे भी जरूरी है कि शादी शुदा जिन्दगी कैसी रहेगी। इस विषय में कहा जाता है कि विवाह रेखा हाथ में जितनी गहरी, साफ और स्पष्ट होती है वैवाहिक जीवन उतना सुखमय और अच्छा रहता है। यदि भाग्य रेखा चन्द्र पर्वत से निकल कर हृदय रेखा तक आ रही है और गुरू पर्वत पर गुणा का चिन्ह नज़र आ रहा है तो यह इसारा है कि आपका वैवाहिक जीवन प्रेम और आनन्द भरा होगा, विवाह के पश्चात आप और तरक्की करेंगे। हस्त रेखा विशेषज्ञ कहते हैं, विवाह रेखा का कटा होना वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है। इस स्थिति में या तो तलाक होता है अथवा जीवन साथी की मृत्यु होती है। यह रेखा सिरे पर कई भागों में बंटा हो तो इसका अर्थ होता है कि वैवाहिक जीवन कष्टमय रहने वाला है।

अगर जीवनसाथी के साथ अनबन रहती है या आप जानना चाहते हैं कि शादी के बाद कहीं अनबन तो नहीं रहेगी इसके लिए देखिए कि सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा से निकलकर बीच-बीच में टूटी तो नहीं है। अगर ऐसा है तो अपने जीवनसाथ पर विश्वास कीजिए और उन्हें समझने की कोशिश कीजिए अन्यथा किसी और के कारण आपके वैवाहिक जीवन में अशांति और अनबन रहेगी। इसके अलावा आप यह भी देखिए कि सूर्य पर्वत से निकलकर पतली सी रेखा हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा को कटती हुई जीवन रेखा से तो नहीं मिल रही है अगर ऐसा है तो आप समझ लीजिए आपकी कामयाबी के बीच जीवनसाथी से अनबन बहुत बड़ा कारण है।

जीवन साथी आपका साथ इस जीवन में कब तक निभायेगा यानी क्या आप उसे तन्हा छोड़ जाएंगे या वो आपको छोड़ जाएगा यह भी आप हाथ की रेखाओं से जान सकते हैं। हस्तरेखा विज्ञान कहता है अगर विवाह रेखा झुककर हृदय रेखा को छू रहा है तो इसका अर्थ है कि आप अपने जीवनसाथी को अकेला छोड़ जाएंगे। विवाह रेखा के सिरे पर क्रास का चिन्ह दिख रहा है तो यह संकेत है कि जीवनसाथी अचानक बीच सफर में छोड़कर दुनियां से विदा हो जाएगा।

बुध की उत्पत्ति से जो कथा जु़डी है, वह है चंद्रमा द्वारा बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण। गर्भवती होने पर तारा ने बृहस्पति के डर से गर्भ को इषीकास्तम्ब में विसर्जित कर दिया....


बुध की उत्पत्ति से जो कथा जु़डी है, वह है चंद्रमा द्वारा बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण। गर्भवती होने पर तारा ने बृहस्पति के डर से गर्भ को इषीकास्तम्ब में विसर्जित कर दिया। इषीकास्तम्ब से जब दीप्तिमान एवं सुंदर बालक बुध का जन्म हुआ तो चंद्रमा एवं बृहस्पति दोनों ने ही उसे अपना पुत्र माना तथा जातकर्म संस्कार करना चाहा। बृहस्पति ने प्रतिवाद में कहा कि पुत्र क्षेत्री का होता है। मात्रा क्षेत्रिणी होती है और पिता क्षेत्री, अत: बृहस्पति ने बुध पर अपना अधिकार माना। जब यह विवाद बहुत अधिक बढ़ गया, तब ब्रrाा जी ने अपने प्रभाव का प्रयोग करते हुए हस्तक्षेप किया। ब्रrाा जी के पूछने पर तारा ने उसे चंद्रमा का पुत्र होना स्वीकार किया तथा ब्रrाा जी ने उस बालक को चंद्रमा को दे दिया। चंद्रमा के पुत्र माने जाने के कारण बुध को क्षत्रिय माना गया, यदि उन्हें बृहस्पति का पुत्र माना जाता तो ब्राrाण माना जाता। चंद्रमा ने बुध के पालन-पोषण का दायित्व अपनी प्रिय पत्नी रोहिणी को दिया। रोहिणी द्वारा पालन-पोषण किए जाने के कारण बुध का नाम रौहिणेय भी है। पद्म पुराण में उल्लेख है कि बुध ने हस्ति शास्त्र का निर्माण किया 

इस कथा में खगोलीय पक्ष के अतिरिक्त जो महत्वपूर्ण पक्ष है - वह है बुध के स्वरूप का चित्रण। इस कथा से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बुध का रूप कितना अधिक मोहक है कि बृहस्पति अपना संपूर्ण क्रोध भूल गए तथा उन्हें पुत्र रूप में स्वीकार करने को तत्पर हो गए। बुध की कांति-नवीन दूब के समान बताई गई है अत: बुध के स्वरूप में एक आकर्षण एवं खिंचाव है। बुध की कृपा जिन व्यक्तियों पर होती है उनके व्यक्तित्व में ऎसा आकर्षण सहज ही पाया जाता है। चंद्रमा के पुत्र होने तथा बृहस्पति द्वारा पुत्र माने जाने के कारण स्वयं के गुणधर्म के अतिरिक्त बुध पर इन दोनों ग्रहों का प्रभाव भी स्पष्टत: देखने को मिलता है। चन्द्रमा और बृहस्पति के आशीर्वाद के कारण ही बुध के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषय विस्तृत हैं। गंधर्वराज के पुत्र होने के कारण जहाँ ललित-कलाओं पर बुध का अधिकार है वहीं बृहस्पति के प्रभाव से विद्या, पाण्डित्य, शास्त्र, उपासना आदि बुध के प्रमुख विषय बन जाते हैं। अभिव्यक्ति की क्षमता बुध ही दे सकते हैं। आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में सफलता के लिए जिस प्रस्तुतिकरण (Presentability) की आवश्यकता होती है वह सिर्फ बुध ही दे सकते हैं। अन्य ग्रह जैसे चन्द्रमा, शुक्र, बृहस्पति, कला, विद्या, कल्पनाशक्ति प्रदान कर सकते हैं परन्तु यदि जन्मपत्रिका में बुध बली न हों तो अपनी प्रतिभा का आर्थिक लाभ उठाने की कला से व्यक्ति वंचित रहता है। वाणी बुध एवं बृहस्पति दोनों का विषय है परन्तु जहाँ वाणी में ओजस्विता बृहस्पति का क्षेत्र है, वहीं वाक्-चातुर्य एवं पटुता बुध का ही आशीर्वाद है। बुध ऎसी हाजिर-जवाबी देते हैं कि सामने वाला अवाक् रह जाए और उससे कुछ बोलते न बने। स्पष्ट है कि सही समय पर, सही जवाब या कार्य के लिए बुद्धि में जिस पैनीधार की आवश्यकता होती है वह बुध की कृपा से ही प्राप्त होती है।
बुध से जु़डा सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण धर्म है अनुकूलनशीलता (Adaptability) हर हाल में खुद को ढाल लेना सिर्फ बुध प्रधान व्यक्ति ही कर सकता है। भयानक तूफानों में जहाँ ब़डे-ब़डे दरख्त धराशायी हो जाते हैं, वहाँ वो नाजुक लचीले व कोमल पौधे बच जाते हैं जो झुककर तूफानों के निकल जाने का इंतजार करते हैं। प्रकृति का नियम परिवर्तन ही है और वह उसे ही जीने का अधिकार देती है, जो इन परिवर्तनों को सहर्ष स्वीकार कर, उनके अनुरूप जल्द से जल्द स्वयं को ढाल ले। यही कारण था कि विशालकाय डायनासोर जहाँ लुप्त हो गए, वहीं छोटे से तिलचट्टे (Cockroach) ने इस युग तक का सफर तय किया। अनुकूलनशीलता का ही दूसरा रूप सामंजस्य (Adjustment) भी है। बुध प्रधान व्यक्ति Generation Gap की शिकायत करते शायद ही सुनने को मिलें। समय की ताल से ताल मिलाना ये अच्छी तरह जानते हैं। यह इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि यदि वक्त के साथ इन्होंने खुद को नहीं बदला तो ये बहुत पीछे और अकेले रह जाएंगे। बुध प्रधान व्यक्ति में इनकी अवस्था के अनुरूप ही एक छोटा बच्चाा सदा जीवित रहता है, जो हंसना, खेलना चाहता है, जिंदादिल रहना और जिंदगी के हर पल को भरपूर जीना चाहता है। यही इच्छा इन्हें कुछ नए सूत्र बनाने की प्रेरणा देती है। जिनकी जन्मपत्रिका में बुध बलवान हैं, वे प्राय: यह कहते हुए मिलेंगे कि इंसान नियम को बनाता है, नियम इंसानों को नहीं, इसका सीधा अर्थ है नियमों में संशोधन का रास्ता खुला रखना इसीलिए ये समय की मांग के अनुसार खुद को, अपने नियमों और उसूलाें को आसानी से बदल कर समय की मुख्य धारा में शामिल हो जाते हैं। ज्योतिषीय परिपेक्ष्य में देखें तो बुध का वर्गीकरण नैसर्गिक शुभ या अशुभ ग्रह के रूप में नहीं किया गया है। वे जिस ग्रह के साथ बैठते हैं या प्रभाव क्षेत्र में होते हैं, उसी के अनुरूप आचरण करते हैं परन्तु अपनी पहचान नहीं खोते हैं, जो इनकी मुख्य विशेषता है। सूर्य के साथ युति करके बुधादित्य योग बनाते हैं। सूर्य की ऊर्जा लेकर बुध जहाँ एक ओर बुद्धि को प्रखर करते हैं वहीं दूसरी ओर अनुशासन लेकर इन्द्रियों को नियंत्रित करते हैं। यद्यपि चन्द्रमा के प्रति बुध के मन में नारा$जगी है तथापि बुध का हास्य-विनोद, चन्द्रमा के साथ से निखर उठता है।
चन्द्रमा की कल्पनाशक्ति और उ़डान की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति इस युति में मिल सकती है। मंगल के साथ बुध की युति होने पर बुध की वणिक बुद्धि अत्यधिक जाग्रत हो जाती है और इस युति को यदि बृहस्पति की अमृत दृष्टि मिल जाए तो उच्चाकोटि का धन योग बनता है। बुध और बृहस्पति की युति अद्भुत है। वाणी, बुद्धि, ज्ञान, संगीत से जु़डी नैसर्गिक प्रतिभा उसमें विद्यमान रहती है अर्थात् व्यक्तित्व में संपूर्णता होती है और व्यक्ति उसे अधिक से अधिक निखारने के लिए प्रयासरत रहता है। यह योग लक्ष्मी और सरस्वती दोनों को पाने की इच्छा देता है। बुध, शुक्र के साथ मिलकर लगभग ऎसे ही परिणाम देते हैं। शनि के साथ मिलकर बुध, शनि के कठोर श्रम के गुण को अपनाकर ज्ञान और कला की वृद्धि का प्रयास करते हैं परन्तु यदि शनि ग्रह का ठण्डापन भी इस युति पर हावी हो जाता है तो निराशाजनक सोच जन्म लेती है। सीखने की गहरी ललक बुध की कृपा से ही आती है। बुध बालक हैं और एक बच्चो में ही सीखने की इच्छा सबसे तीव्र होती है। जन्मकुण्डली में बुध शक्तिशाली हों तो यह इच्छा सदा बनी रहती है। ऎसा व्यक्ति नित नई चीजें सीखता है और समय की धारा से खुद को अलग-थलग नहीं होने देता बल्कि उस धारा को अपने पक्ष में मो़ड लेने को लालायित रहता है।
आमोद-प्रमोद और मनोरंजन बुध का क्षेत्र है। अभिव्यक्ति और मनोरंजन का मिश्रित रूप (दूसरों की आवा$ज आदि की नकल करना) की कला है जो बुध की कृपा से ही संभव है। अभिव्यक्ति की अद्भुत क्षमता के कारण ही Public dealing के कार्यो में बुध प्रधान व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ होते हैं। ऎसे व्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ कौशल तब निखर कर आता है जब विषय आर्थिक लेन-देन का हो। बुध ग्रह देने की अपेक्षा लेने की प्रेरणा देते हैं। यही कारण है कि बुध वे सभी गुण देते हैं जिनसे आर्थिक गणित, लाभ में परिवर्तित हो जाती है। मार्केटिंग के क्षेत्र में सफलता, बुध की कृपा के बिना मिलना लगभग असंभव है। बुध गणितज्ञ हैं और लाभ के लिए जो़ड-तो़ड भी बिठा ही लेते हैं। बुध की कृपा से व्यक्ति सुलझी हुई गणित करके गुणा-भाग के साथ जोखिम उठाता है, जिसे आधुनिक परिभाषा में Calculated Risk कहते हैं और यही सफलता की कँुजी भी है।
बुध ग्रह को भगवान विष्णु का प्रतिनिधि कहा जा सकता है। इसीलिए धन, वैभव आदि का संबंध बुध से है। बुध की दिशा उत्तर है तथा उत्तर दिशा कुबेर का स्थान भी है। वास्तु-योजना में उत्तर दिशा को तिजोरी के लिए प्रशस्त बताया गया है। कार्यालयों में लेखाकार व कैशियर के लिए प्रशस्त स्थान उत्तर दिशा को ही बताया गया है।
बुध के वो प्रमुख गुणधर्म जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, वही गुणधर्म यदि अनियंत्रित हो जाएं तो अपराध की नई गाथा लिख देते हैं। बुध के जन्म के साथ जो छल, वृतांत रूप में जु़डा हुआ है वह भी कई बार बुध प्रभावित व्यक्तियों में परिलक्षित होता है। बुध स्वभाव में जो लचीलापन देते हैं वह कभी-कभी नियमों व कायदों के उल्लंघन का कारण भी बन जाता है। लाभ की गणित जब स्वार्थ भावना से अधिक प्रभावी हो जाती है तो जो़ड-तो़ड प्रपंच की गणित शुरू हो जाती है। चूंकि बुध, बुद्धि के कारक हैं अत: अपराध का स्वरूप और हथियार इसी के अनुरूप हो जाते हैं।
इंटरनेट के माध्यम से होने वाले अपराध, काग$जों में की जाने वाली हेरा-फेरी आदि प्रतिकूल बुध से ही होते हैं। हर्षद मेहता, केतन पारीख, तेलगी आदि व्यक्तियों ने जो आर्थिक अपराध किए उन्हें बुद्धिमत्तापूर्ण अपराध की श्रेणी में ही रखा जा सकता है। इस प्रकार बुध विद्या रूपी वह शक्तिपुंज है जो सकारात्मक हो जाएं तो ज्ञान, संगीत, ललितकलाएं, मार्केटिंग, वाणी कौशल, लेखन आदि क्षेत्राें में उन्नति देते हैं परंतु यदि नकारात्मक हो जाएं तो व्यक्ति अपराध के ऎसे-ऎसे रास्ते खोज लेता है जिसकी कल्पना भी दूसरे नहीं कर सकते। इंटरनेट पर नासा की वेबसाइट को या इंटरनेट बैंकिंग में किसी के खाते को क्रेक करना नकारात्मक बुध के कारण ही संभव है। जन्मपत्रिका में बुध का शुभ होना या शुभ ग्रहों के प्रभाव में होना एक वरदान है।

Thursday 11 September 2014

गोरख शाबर गायत्री मन्त्र “ॐ गुरुजी, सत नमः आदेश। सत गुरुजी को आदेश। ॐकारे शिव-रुपी, मध्याह्ने हंस-रुपी,सन्ध्यायां साधु-रुपी। हंस, परमहंस दो अक्षर।...


गोरख शाबर गायत्री मन्त्र
“ॐ गुरुजी, सत नमः आदेश। सत गुरुजी को आदेश। ॐकारे शिव-रुपी, मध्याह्ने हंस-रुपी,सन्ध्यायां साधु-रुपी। हंस, परमहंस दो अक्षर। गुरु तो गोरक्ष, काया तो गायत्री। ॐ ब्रह्म, सोऽहंशक्ति, शून्य माता, अवगत पिता, विहंगम जात, अभय पन्थ, सूक्ष्म-वेद, असंख्य शाखा, अनन्तप्रवर, निरञ्जन गोत्र, त्रिकुटी क्षेत्र, जुगति जोग, जल-स्वरुप रुद्र-वर्ण। सर्व-देव ध्यायते। आए श्रीशम्भु-जति गुरु गोरखनाथ। ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षःप्रचोदयात्। ॐ इतना गोरख-गायत्री-जाप सम्पूर्ण भया। गंगा गोदावरी त्र्यम्बक-क्षेत्र कोलाञ्चलअनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ। नव-नाथ, चौरासी सिद्ध, अनन्त-कोटि-सिद्ध-मध्ये श्री शम्भु-जतिगुरु गोरखनाथजी कथ पढ़, जप के सुनाया। सिद्धो गुरुवरो, आदेश-आदेश।।

Monday 8 September 2014

चन्द्रमा चन्द्रमा ....


चन्द्रमा
चन्द्रमा

मित्र : सूर्य, बुध।
शत्रु : कोई नहीं।
सम : मंगल, बृहस्पति, शुक्र, शनि।
अधिपति : कर्क।
मूलत्रिकोण : वृष 3° - 30°
उच्च : वृष 3°
नीच : वृश्चिक 3°
कला/किरण : 16/8
लिंग : स्त्रीलिंग।
दिशा : उत्तर-पश्चिम।
शुभ रंग : रूपहला/चांदी जैसा रंग, सफेद।
शुभ रत्न : मोती, चंद्र - रत्न।
शुभ संख्या : 2, 11, 20
देवता : दुर्गा, पार्वती।
बीज मंत्र :
ऊँ श्राम् श्रीम् शौम् से चंद्राय नम:। (11000 बार)।

वैदिक मंत्र :
दघिशंखतुशाराभं क्षीरोदोर्णवसभवम् नवमि्। 
भाशिनं भवत्या भामभोर्मुकुटभुशणम्।।

दान योग्य वस्तुएं :
दूध, दही, चावल, मोती, मिश्री, चांदी, सफेद फूल, सफेद कपड़ा या चंदन (सोमवार को शाम के समय)।

स्वरूप :
आँखें, अत्यंत कामुक, वातरोगी, सुस्त प्रकृति, सरस, अस्थिर मानसकता, वृत्ताकार।सित्रिदोष व शरीर आकर्षक के अंग- पुरुष की बाईं आँख व महिला की दाईं आँख, गर्भाशय, छाती, गाल, अण्डाशय, रक्त, वात, कफ, मूत्राशय, पिंडली, मांस, पेट इत्यादि।

त्रिदोष व शरीर के अंग :
पुरुष की बाईं आँख व महिला की दाईं आँख, गर्भाशय, छाती, गाल, अण्डाशय, रक्त, वात, कफ, मूत्राशय, पिंडली, मांस, पेट इत्यादि।

रोग :
क्षय रोग (टी. बी.), गले से संबंधित समस्याएं, खून की कमी, मधुमेह, मासिक अनियमितता, बेचैनी, सुस्ती, सूजन, गर्भाशय से संबंधित रोग, कफ, ड्राप्सी, फेफड़े की सूजन, गुर्दा, रक्त अशुद्धता, सिंग वाले जानवरों से भय, पानी से खतरा, उदरशूल, त्वचा रोग, क्षयरोग, वी.डी., खसरा, बदहजमी, नजला - जुकाम, पेचिश, हृदय रोग, फेफड़ा, अस्थमा, बुखार, पीलिया, पथरी, अतिसार/दस्त।

प्रतिनिधित्व :
हृदय, मन, मस्तिष्क, मूल।

विशिष्ट गुण :
यह बच्चे को धारण करने की शक्ति देता है, संदेहशील, पानी व प्राकृतिक शक्तियों से संबंधित गर्भाधान का एक ग्रह, एक रेंगने वाला कीट।

कारक :
जलीय स्थान, माता, हृदय, मस्तिष्क, समुद्री भोजन, मोती, रक्त, शरीर में स्थित तरल पदार्थ, पेट्रोलियम उत्पाद, सुगंध, बाइंर् आँख, बागवानी, यात्रा, भावनाएं, नमक, समुद्री दवा, आंत उतरना, व्यक्तित्व, तरल पदार्थ, विदेश यात्रा, शाही पकवान, परिवर्तन।

व्यवसाय व जीविका :
पत्रकारिता, पर्यटन, यात्री, पानी का काम, आबकारी, महिला कल्याण, विज्ञापन, जलपान गृह, नाविक, नमक विक्रेता, यांत्रिक अभियंता (मकैनिकल इंजिनीयर), कृषि, अस्पताल, निर्संग होम, मवेशी, नौ - परिवहन, नौ - सेना, मत्स्य, पेट्रोलियम, मूंगा, दूध, मदिरा, मोती, पौधशाला, रासायनिक

तुझे पाने की ख्वाहिश करते हैं हजारों कुछ तो बदल गये हैं , कुछ और बदल जायेंगे | तेरे और करीब आयेंगे || .....


तुझे पाने की ख्वाहिश करते हैं हजारों
कुछ तो बदल गये हैं , कुछ और बदल जायेंगे |
तेरे और करीब आयेंगे ||

वैसे तो बडा मुश्किल है, बदलना आदत-ए-इन्सान |
कोशिश यही है एक दिन, कर के इसे दिखायेंगे |
तेरे और करीब आयेंगे ||

तमन्नाये तो बहुत सी, कर लेता है हर कोई |
न हो अगर जो रहबर, तो पूरी न कर पायेंगे |
तेरे और करीब आयेंगे ||

है दासता गुरु की, इस दास को पसंद |
प्रसन्नता प्रभु की, कभी तो पा जायेंगे |
तेरे और करीब आयेंगे ||

तुझे पाने की ख्वाहिश करते हैं हजारों |
हम तेरे हो चुके हैं, तुझे अपना अब बनायेंगे |
तेरे और करीब आयेंगे ||

भव से निकलने के लिये, जो बख्शे है नियम पांच |
निभा लिया जो दिल से, तो पार पहुंच जायेंगे |
तेरे और करीब आयेंगे ||

Saturday 6 September 2014

सूर्य मित्र : चंद्रमा, मंगल, वृहस्पति। शत्रु : शुक्र, शनि। सम : बुध अधिपति : सिंह । मूलत्रिकोण : सिंह 0°-20°....


सूर्य

मित्र : चंद्रमा, मंगल, वृहस्पति।
शत्रु : शुक्र, शनि।
सम : बुध
अधिपति : सिंह ।
मूलत्रिकोण : सिंह 0°-20°
उच्च : मेष 10°
नीच : तुला 10°
कला/किरण : 30/20
लिंग : पुरुष।
दिशा : पूर्व।
शुभ रंग : संतरी, केसरिया, हल्का लाल।
शुभ रत्न : माणिक, रक्तमणि।
शुभ संख्या : 1,10,19
देवता : शिव, रूद्र, नारायण, अग्नि, सच्चिदानन्द।
बीज मंत्र :
ऊँ ह्राम् ह्रीम् ह्रौम् से सूर्याय नम:। (30 दिन में 7000 बार)।

वैदिक मंत्र :
ऊँ आस्त्येन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मृत्र्य च।
हिरण्येन सविता रथेनादेवी यति भुवना विपश्यत्।।

दान योग्य वस्तुएं :
गेहुं, तांबा, माणिक, गुड़, लाल कपड़ा, लाल फूल, चंदंन की लकड़ी, खंडसारी, केसर (रविवार को सूर्योदय के समय)।

स्वरूप :
शहद के रंग वाली आँखे, कमजोर दृष्टि, छोटे बाल, वर्गाकार, अत्यधिक चिड़चिड़ापन, सुगठित शरीर।

त्रिदोष व शरीर के अंग :
पित्त, वायु, हड्डियां, नाभि/मध्य भाग।

रोग :
कमजोर दृष्टि, हृदय रोग, विषाक्तता, हड्डी टूटना, मानसिक परेशानी, सिर दर्द, माइग्रेन, बुखार, जलना, कटना, चोट, सूजाक, त्वचा रोग, कोढ़, पीलिया, पित्तिय प्रकृति, पेट से संबंधित परेशानी, गड़बड़ी, भूख की कमी, अतिसार।

प्रतिनिधित्व :
प्राण, आत्मा, अहंकार, डाक्टरी, जीवनशक्ति, धातु, क्षमता, ताकत।

विशिष्ट गुण :
राजनीति, शाही, कुलीन, ग्रह, चौपाया, जीवन स्रोत, एक नैसर्गिक आत्मकारक, बंजर, गर्म और उर्जा।

कारक :
शाही, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि, शक्ति, स्वास्थ्य, पिता, चाचा, राजनीतिज्ञ, वैद्य, चिकित्सक, अधिकार, दवा, रक्त - संचार, आँखें, ऊन, जंगल, लकड़ी, रेगिस्तान, मकान बनाने की लकड़ी/लट्ठा, आत्मा, सरकार, नौकरी (छठा भाव), व्यवसाय (दसवां भाव), पूजास्थल, साहस, सम्मानित पद, दलाली या कमीशन, पैतृक सम्पत्ति।

व्यवसाय व जीविका :
वन अधिकारी, सर्जक, आर्थिक व्यवसाय, राजसी सरकारी नियुक्ति, शासक, प्रबन्धक, प्रोत्साहक, जौहरी, स्वामी, डिजाइनर, ऊन - व्यापारी, शासक वर्ग, मजिस्टे्रट, सर्वेक्षक, संकेतक/तार-बाबू, दलाल। चंद्रमा (सात्विक,

Monday 1 September 2014

पति-पत्नी के जीवन में बेडरूम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बेडरूम में रात को सोने से लेकर सुबह उठने तक के समय में पति-पत्नी के बीच नजदीकियां भी बढ़ सकती हैं और दूरियां भी। ...


 पति-पत्नी के जीवन में बेडरूम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बेडरूम में रात को सोने से लेकर सुबह उठने तक के समय में पति-पत्नी के बीच नजदीकियां भी बढ़ सकती हैं और दूरियां भी। ऐसे में किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थिति से बचने के लिए वास्तु के अनुसार बताई गई बातों का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है। यदि पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल अच्छा हो और कमरे में कोई वास्तु दोष हो तो वैवाहिक जीवन में पूर्ण संतुष्टि नहीं मिल पाती है।

पति-पत्नी के जीवन में छोटी-छोटी बातें भी बड़ी भूमिका निभाती हैं, जैसे घर में रखी हर छोटी और सामान्य वस्तु का असर वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। शयनकक्ष में कोई गलत वस्तु रखी है तो इसका असर बहुत तेजी से पति-पत्नी के रिश्तों पर होता है। पति-पत्नी का जीवन सुखी और प्यारभरा हो इसलिए कई उपयोगी टिप्स बताई गई हैं। इन बातों को अपनाने से वैवाहिक जीवन में खुशियां और संपन्नता बनी रहती है। पति-पत्नी के सुख पर बुरा असर डालने वाली चीजों में बेडरूम में लगा दर्पण भी शामिल है।

पति-पत्नी के जीवन में बेडरूम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बेडरूम में रात को सोने से लेकर सुबह उठने तक के समय में पति-पत्नी के बीच नजदीकियां भी बढ़ सकती हैं और दूरियां भी। ऐसे में किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थिति से बचने के लिए वास्तु के अनुसार बताई गई बातों का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है। यदि पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल अच्छा हो और कमरे में कोई वास्तु दोष हो तो वैवाहिक जीवन में पूर्ण संतुष्टि नहीं मिल पाती है।

पति-पत्नी के जीवन में छोटी-छोटी बातें भी बड़ी भूमिका निभाती हैं, जैसे घर में रखी हर छोटी और सामान्य वस्तु का असर वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। शयनकक्ष में कोई गलत वस्तु रखी है तो इसका असर बहुत तेजी से पति-पत्नी के रिश्तों पर होता है। पति-पत्नी का जीवन सुखी और प्यारभरा हो इसलिए कई उपयोगी टिप्स बताई गई हैं। इन बातों को अपनाने से वैवाहिक जीवन में खुशियां और संपन्नता बनी रहती है। पति-पत्नी के सुख पर बुरा असर डालने वाली चीजों में बेडरूम में लगा दर्पण भी शामिल है।

सोते समय ध्यान रखें ये बातें- पति-पत्नी, दोनों इस बात का ध्यान रखें कि सोते समय सिर पूर्व दिशा की ओर एवं पैर पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। यदि इस दिशा में सोना संभव नहीं है तो आप दक्षिण दिशा में सिर और उत्तर दिशा में पैर रखकर भी सो सकते हैं।

इस दिशा में बेडरूम होता है फायदेमंद- यदि बेडरूम घर की दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम दिशा में होगा तो पति-पत्नी के लिए काफी फायदेमंद रहेगा।


इस दिशा में अशुभ होता है शयनकक्ष- इस बात का ध्यान रखें कि उत्तर-पूर्व दिशा देवी-देवताओं का स्थान होती है। अत: इस दिशा में बेडरूम शुभ फल प्रदान नहीं करता है। ऐसे कमरे में सोने से धन की कमी होती है और कार्यों में असफल होने की संभावनाएं बढ़ती हैं।

गलत दिशा में बेडरुम हो तो ये उपाय करें- जिन लोगों का बेडरूम गलत दिशा में है वे कमरे में हंसों के जोड़े का फोटो लगाएं।

राधा-कृष्ण का प्रेममय फोटो लगाएं-गलत दिशा में बेडरूम होने पर कमरे में राधा-कृष्ण का प्रेममय फोटो लगाएं। ऐसा करने पर कमरे के वास्तु दोष खत्म हो जाएंगे। बेडरूम में राधा-कृष्ण के अतिरिक्त किसी और देवी-देवता के फोटो लगाने से बचना चाहिए।

मछलियों का जोड़ा रखें- जोड़े में मछलियां रखना भी बहुत अच्छा उपाय है। इससे ऐसी सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे पति-पत्नी के बीच आकर्षण बढ़ता है। दांपत्य जीवन में सामंजस्य बना रहता है। इस उपाय से विवाद जैसी सभी संभावनाएं भी कम हो जाती हैं।

ऐसे बेडरूम में मिलती है शक्ति- जिन लोगों का बेडरूम घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है उन्हें कठिन परिस्थितियों से निपटने की पूर्ण शक्ति प्राप्त होती है। ऐसे बेडरूम वाले लोग अपनी हिम्मत के बल पर पारिवारिक विवादों से मुक्ति पा लेते हैं।

वैवाहिक संबंध के लिए अशुभ है ऐसा बेडरूम- यदि बेडरूम दक्षिण-पूर्व दिशा में है तो यह वैवाहिक रिश्ते के लिए शुभ नहीं होता है। ऐसे कमरे में सोने वाले जोड़े को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

पलंग के नीचे क्रिस्टल रखें- वैवाहिक रिश्तों में मधुरता के लिए यह उपाय करें। पलंग पर जिस ओर आप अपने पैर रखते हैं, उसके नीचे क्रिस्टल बॉल या तराशा हुआ क्रिस्टल रखें।

कमरे में ऐसी चीजें न रखें- ऐसी चीजों का प्रयोग करने से बचें, जो अलगाव दर्शाती हों। अपने पलंग के ठीक ऊपर छत पर बीम नहीं होना चाहिए। यदि रूम में ऐसी स्थिति हो तो पलंग का स्थान बदल लें।

अलमारी कहां रखें- यदि बेडरूम में अलमारी है तो उसे शयनकक्ष की उत्तर-पश्चिम या दक्षिण दिशा में रखें।

बेडरूम में कहां अन्य खास सामान- बेडरूम में इलेक्ट्रानिक सामान को दक्षिण-पूर्व कोने में रखना शुभ रहता है। ड्रेसिंग टेबल को पूर्व या उत्तर दिशा में रखना चाहिए। यदि आप शयनकक्ष में लिखने-पढऩे का काम करते हैं तो इसके लिए शुभ दिशा है पूर्व। पूर्व दिशा में मुख रखकर ये काम करेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा।

धन कहां रखें- जो लोग बेडरूम में धन रखते हैं, वे इस बात का ध्यान रखें कि तिजोरी शयनकक्ष की उत्तर दिशा में हो। उत्तर दिशा में धन रखना श्रेष्ठ रहता है।

शयन कक्ष सजाकर रखें- बेडरूम में पति-पत्नी के प्रतीक स्वरूप दो सुंदर सजावटी गमले रखें। शयन कक्ष हमेशा सजाकर रखें। इस कमरे में कबाड़ जमा न होने दें। ध्यान रखें कि इस रूम में किसी भी वस्तु पर धूल नहीं होनी चाहिए।