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Monday 4 August 2014

भूत के कई अर्थ होते हैं उनमें से एक है बीता हुआ काल या समय। जो लोग भूतकाल में ही जिते रहते हैं उन्हें भूत कहने में कोई हर्ज है क्या? मृत्यु के बाद नया जन्म लेने में यही एक आदत जीवात्मा को नया जन्म नहीं लेने देती है कि उसमें अभी तक आसक्ति, स्मृति और वासनाओं का मन में वास रहता हैं। ...


सर्वप्रथम भूत ही बनता है।
भूत-प्रेत से जुड़े दस सवाल और उनके उत्तर

भूत के कई अर्थ होते हैं उनमें से एक है बीता हुआ काल या समय। जो लोग भूतकाल में ही जिते रहते हैं उन्हें भूत कहने में कोई हर्ज है क्या? मृत्यु के बाद नया जन्म लेने में यही एक आदत जीवात्मा को नया जन्म नहीं लेने देती है कि उसमें अभी तक आसक्ति, स्मृति और वासनाओं का मन में वास रहता हैं। जो लोग अपने इस जीवन की स्मृतियों को नहीं छोड़ना चाहते प्रकृति उन्हें दूसरा गर्भ उपलब्ध कराने में अक्षम होती है।

जानिए पितृलोक को...

कभी कभार ऐसा होता है कि कोई नया जन्म ले लेता है लेकिन उसकी पीछले जन्म की याददश्त बनी रहती है, उसे कहते हैं कि इसे पीछले जन्म की सब याद है। भूत से जुड़ी धारणा और मान्यताओं के संबंध में प्रश्नों के माध्यम से उत्तर दिए जाने का प्रयास करेंगे।

सवाल पहला : प्रेत क्या है और प्रेत किसे कहते हैं?
जवाब : पितृ शब्द से बना है प्रेत। स्थूल शरीर छोड़ने के बाद मान्यता अनुसार जो अंतिम क्रिया और तर्पण-पिंड या श्राद्ध कर्म करने तक व्यक्ति प्रेत योनी में रहता है तो उसे प्रेत कहते हैं। तीसरे, तेरहवें, सवा माह या एक वर्ष तक वह प्रेत योनी में रहता है।

एक वर्ष के भीतर वह यदि पक्का स्मृतिवान है तो जीवात्मा पितृलोक चला जाता है तब उसे पितर या पितृ कहा जाता है। लेकिन यदि नहीं गया है तो और यहीं धरती पर ही विचरण कर रहा है तो वह प्रेत या भूत बनकर ही तब तक रहता है जब तक कि उसकी आत्मा को शांति नहीं मिल जाती।

सवाल : भूत या प्रेत बाधा से ग्रसित व्यक्ति व्यक्ति का उपचार हो सकता है होता है तो कैसे? 
जवाब : भूत या प्रेत बनी जीवात्मा की मानसिक शक्ति इंसानों से कहीं अधिक ताकतवर होती है। ऐसे व्यक्ति अपनी शांति के लिए या किसी से बदला लेने के लिए दूसरों के मन और मस्तिष्क पर कब्जा कर लेते हैं। ऐसे में भूत बाधा ग्रस्त व्यक्ति का आध्यात्मिक रूप से इलाज करना जरूरी होता है। 

इसके लिए व्यक्ति को हनुमान की शरण में जाना चाहिए या योगसाधना के द्वारा अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति को बढ़ाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए कि वो मन, वचन और कर्म से शुद्ध और पवित्र रहे। पवित्र रहने वाले व्यक्ति के आसपास भूत नहीं फटकते हैं।

ऐसे व्यक्ति को अंधकार से दूर रहकर ध्यान द्वारा मन और मस्तिष्क में सकारात्म ऊर्जा का संचार करना चाहिए। तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन व्यक्ति शुद्ध और निर्मर बना रहे। मंगलवार और रविवार के दिन विशेष ध्यान रखे और इस दिन अंधकार या बाहरी प्रवास से बचे।

सवाल : भूत के कितने वर्ग और प्रकार होते हैं।
जवाब : वर्ग की बात करें तो प्रेत आत्माएं भी इंसानों की तरह सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी होती है। सतोगुणी आत्माएं किसी को परेशान नहीं करती और सदा शांत रहकर लोगों की मदद करती हैं। रजोगुणी आत्माओं का कोई भरोसा नहीं, वे अपनी इच्छापूर्ति के लिए संस्कार अनुसार कार्य करती है ऐसी आत्माएं किसी के भी शरीर में प्रवेश कर अपनी इच्छा की पूर्ति कर सकती है। तमोगुरु आत्माएं सदा लोगों को परेशान करती रहती है। 

ऐसी आत्माएं धरती पर बुराइयों का साथ देती हैं जो लोग सदा मांस भक्षण और शराब इत्यादि का सेवन करते रहते हैं उनके आसपास तमोगुणी आत्माएं रहती है।

भूतों के प्रकार : हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।

इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है। 

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