Advt

Wednesday 20 August 2014

जानिए किस समय नहाने से मिलती है लक्ष्मी कृपा, दूर होती हैं परेशानियां यदि हम नहाते समय ही कुछ बातों का ध्यान रखें तो अच्छे स्वास्थ्य के साथ ही कई शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं। ...


जानिए किस समय नहाने से मिलती है लक्ष्मी कृपा, दूर होती हैं परेशानियां
यदि हम नहाते समय ही कुछ बातों का ध्यान रखें तो अच्छे स्वास्थ्य के साथ ही कई शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि नहाते समय कुछ नियमों का पालन करें तो लक्ष्मी कृपा के साथ ही तेज बुद्धि और चमकदार त्वचा प्राप्त होती है। प्राचीन काल में साबुन आदि तो होते नहीं थे, इस कारण मिट्टी आदि चीजों का इस्तेमाल करते हुए स्नान किया जाता था। इन सभी शुभ फलों को प्राप्त करने के लिए ध्यान रखें यहां बताई गई बातें...
सुबह का स्नान है सर्वश्रेष्ठ
सुबह-सुबह किया गया स्नान लौकिक सुख प्रदान करने वाला माना गया है। रात को सोते समय कुछ लोगों के मुख से निरंतर लार गिरती रहती है, जिससे पूरा शरीर अपवित्र हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में सुबह उठते ही सबसे पहले स्नान कर लेना चाहिए। यदि संभव हो सके तो ब्रह्म मुहूर्त यानी सूर्योदय से पूर्व ही स्नान करेंगे तो सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
ऐसे स्नान से अलक्ष्मी, परेशानियां, बुरी शक्तियों का प्रभाव, बुरे सपने और गलत विचारों का नाश हो जाता है।
कायिक स्नान- कुछ परिस्थितियों में सिर पर बिना जल डाले भी स्नान किया जा सकता है। साथ ही, यदि कोई व्यक्ति किसी कारण से सुबह स्नान करने में असमर्थ है तो वह भीगे हुए कपड़े से शरीर पोंछकर भी पवित्र हो सकता है। ऐसे स्नान को कायिक स्नान कहते हैं।
प्राचीन समय में ऐसे करते थे स्नान
पुराने काल में स्नान करने के लिए यहां बताई गई सभी बातों का ध्यान रखा जाता था। उस काल में साबुन आदि तो होते नहीं थे, इस कारण मिट्टी आदि चीजों का इस्तेमाल करते हुए स्नान किया जाता था।
स्नान के लिए शुद्ध मिट्टी, पुष्प, अक्षस, तिल, कुश और गोमय यानी गाय का गोबर एकत्र किया जाता था। इसके बाद किसी तालाब या नदी से जल लाया जाता था, मिट्टी के पांच पिण्ड बनाए जाते थे। फिर मिट्टी के एक भाग से सिर को धोया जाता था, दूसरे भाग से नाभि के ऊपर के अंगों को साफ किया जाता था। इसके बाद तीसरे भाग से नाभि के नीचे का भाग और चौथे भाग से पैरों को और शेष मिट्टी से अन्य अंगों को साफ किया जाता था।
छ: प्रकार के हैं स्नान
शास्त्रों में छ: प्रकार के स्नान बताए गए हैं। ये हैं ब्राह्म, आग्नेय, वायव्य, दिव्य, वारुण और यौगिक स्नान।
- जो स्नान सुबह मंत्रों का जप करते हुए कुश के साथ किया जाता है, वह ब्रह्म स्नान कहा जाता है।
- सिर से पैर तक विधि-विधान के साथ भस्म को अंगों पर लगाकर स्नान करना, आग्नेय स्नान कहलाता है।
- गोधूलि से स्नान करना वायव्य स्नान कहलाता है। शास्त्रों में यह स्नान उत्तम माना गया है।
गोधूलि- गाय को सबसे पवित्र जीव माना गया है और उसके लौटने से रास्तों में जो धूल उड़ती है, उससे वातावरण पवित्र होता है। गाय के पैरों से उडऩे वाली धूल को गोधूलि कहते हैं।
- धूप के साथ होने वाली बारिश में स्नान करना दिव्य स्नान कहलाता है।
- जल में डूबकर स्नान करना, वारुण स्नान कहलाता है।
- योग द्वारा भगवान का चिंतन और ध्यान करते हुए जो स्नान किया जाता है, वह यौगिक स्नान कहलाता है। यौगिक स्नान को आत्मतीर्थ भी कहा जाता है।
नहाने से पहले ध्यान रखें ये बातें...
- नहाने से पहले दुग्धधारी वृक्षों की कोमल टहनी से दातुन करना श्रेष्ठ रहता है। दुग्धधारी वृक्ष जैसे अपामार्ग, बिल्व, कनेर के वृक्ष। नीम की टहनी से दातुन करना भी श्रेष्ठ रहता है।
- दातुन करते समय हमारा मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। यह शुभ शकुन माना गया है।

No comments:

Post a Comment