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Sunday 24 August 2014

हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं सुबह मां गायत्री का होता है यह दिव्य रूप, जिसके दर्शन से मिले यह शक्ति मां गायत्री वेदमाता पुकारी जाती है। वेद ज्ञान रूपी शक्ति है। मान्यता है कि यह ज्ञानरूपी शक्ति ही ब्रह्मदेव के रूप में प्रकट हुई। ....


हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं
सुबह मां गायत्री का होता है यह दिव्य रूप, जिसके दर्शन से मिले यह शक्ति


मां गायत्री वेदमाता पुकारी जाती है। वेद ज्ञान रूपी शक्ति है। मान्यता है कि यह ज्ञानरूपी शक्ति ही ब्रह्मदेव के रूप में प्रकट हुई। ब्रह्मदेव द्वारा ही अलग-अलग लोक रचकर उनको चार वेदों के रूप में बांटी गई ज्ञान शक्ति से संपन्न किया। संसार व धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष भी यही शक्ति समाई है। इसलिए पूरा जगत ही गायत्री शक्ति का स्वरूप माना जाता है।

यही कारण है कि गायत्री साधना देव भाव से करना अहम माना गया है। किंतु अगर गायत्री के साकार रूप में उपासना की बात आती है तो शास्त्रों में मां गायत्री के तीन अलग-अलग काल में तीन रूप बताए गए हैं, जिनके दर्शन अलग-अलग शक्तियां देने वाले माने गए हैं। जानते हैं सुबह मां गायत्री के दिव्य रूप को - सुबह का वक्त ब्रह्ममुहूर्त भी पुकारा जाता है। इसलिए इस काल में मां गायत्री ब्राह्मी नाम से पूजनीय है। इसे कुमारिका रूप भी पुकारा जाता है। जिसमें उनका तेज उगते सूर्य के लाल रंग की भांति ही होता है। वह हंस पर बैठी तीन नेत्रों वाली होती है। साथ ही वह पाश, अंकुश, अक्षमाला, कमण्डलु, ऋग्वेद और ब्रह्मशक्ति से संपन्न होती है। मां गायत्री का यह दिव्य स्वरूप जीवन को प्रेरणा और शक्ति देता है। उनकी तरुणाई बचपन की तरह शुद्ध भाव व चंचलता, लाल आभा खून की तरह गति, हंस पर बैठना प्राणों पर नियंत्रण, पाश - बंधन, अंकुश - नियंत्रण, ऋग्वेद - ज्ञान शक्ति का प्रतीक है।

यही कारण है कि कि सुबह गायत्री साधना से ये सभी शक्तियां साधक को प्राप्त होती हैं। चूंकि गायत्री के इस रूप का निवास पृथ्वी लोक माना जाता है। प्रतीकात्मक रूप से शरीर भी आधार या भूलोक के समान है। इसलिए सूर्य उदय के काल में ब्राह्मी यानी गायत्री की साधना सूर्य की भांति ही शरीर को स्वस्थ्य, सुंदर व ऊर्जावान रख प्राणशक्ति देने वाली मानी गई है।

गायत्री मंत्र का वर्णं
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्
भर्गो देवस्यः धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्

गायत्री मंत्र संक्षेप में
गायत्री मंत्र (वेद ग्रंथ की माता) को हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना जाता है. यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है. इस मंत्र का मतलब है - हे प्रभु, क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये. यह मंत्र सूर्य देवता (सवितुर) के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है.

हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं
आप हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं
आप हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं
हे संसार के विधाता
हमें शक्ति दो कि हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर सकें
क्रिपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें

मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या

गायत्री मंत्र के पहले नौं शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं

ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी, प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)

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