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Monday 2 June 2014

फल की इच्छा का त्याग करना || त्याग किसका करना चाहिए ? || गृहस्थ - आश्रम में रहता हुआ भी मनुष्य त्याग के द्वारा परमात्मा को प्राप्त कर सकता है | सात प्रकार के त्याग के लक्षण इस प्रकार हैं : -


फल की इच्छा का त्याग करना
|| त्याग किसका करना चाहिए ? ||

गृहस्थ - आश्रम में रहता हुआ भी मनुष्य त्याग के द्वारा परमात्मा को प्राप्त कर सकता है | 
सात प्रकार के त्याग के लक्षण इस प्रकार हैं : - 

[ १ ] निषिद्ध कर्मों का त्याग - चोरी , व्यभिचार , झूठ , कपट , हिंसा , अभक्ष्य - भोजन और प्रमाद आदि शास्त्र विरुद्ध नीच कर्मों को मन ,वचन और शरीर से न करना | 

[ २ ] काम्य कर्मों का त्याग - स्त्री , पुत्र और धन आदि प्रिय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए , रोग , संकट आदि की निवृति के लिए किये जाने वाले हवन ,दान तप , उपासना आदि सकाम - कर्मों को अपने स्वार्थ के लिए न करना |

[ ३ ] तृष्णा का सर्वथा त्याग - मान , बडाई , प्रतिष्ठा एवं स्त्री , पुत्र ,धन आदि जो प्रारब्ध के अनुसार प्राप्त हुए हों , उनके बढ़ने की इच्छा का त्याग करना |

[ ४ ] अपने सुख के लिए दूसरों की सेवा लेने का त्याग - किसी प्रकार भी किसी से अपना स्वार्थ सिद्ध करने की मन में इच्छा रखना , अथवा दूसरों से सेवा कराने का भाव रखना , उन सबका त्याग करना |

[ ५ ] कर्मों में आलस्य व फल की इच्छा का त्याग - ईश्वर की भक्ति , देवताओं का पूजन , माता - पिता , गुरुजनों की सेवा , यज्ञ , दान , तप , वर्णाश्रम धर्म के अनुसार गृहस्थ का कार्य एवं शरीर निर्वाह हेतु खान -पान आदि जितने कर्तव्य - कर्म हैं , उन सबमें आलस्य का और सब प्रकार की कामना का त्याग करना | अर्थात पूर्ण निष्काम भाव से कर्म करना और फल की इच्छा का त्याग करना |

[ ६ ] कामना , आसक्ति और ममता का त्याग - संसार के सभी पदार्थों [ धन, भवन , वस्त्र आदि ] और मन , वचन , और कर्म द्वारा होने वाली सभी क्रियाओं में कामना , आसक्ति और ममता का त्याग करना |

[ ७ ] राग और अहंकार का त्याग - शरीर , संसार और कर्मों में राग [ प्रियता , आकर्षण , भोग - बुद्धि , सुख - बुद्धि आदि ] और कर्त्तापन का अहंकार का त्याग करना | यही वास्तविक त्याग है |

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