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Thursday 26 June 2014

बिमारियों का नाशक है हठयोगप्रदीपिका पश्चिमासन..............

बिमारियों का नाशक है

हठयोगप्रदीपिका

पश्चिमासन

१. पैरों को जमीन पर सीधा कर के (साथ साथ लंबे रख करे), जब दोनो हाथों से पैरों की उँगलीयाँ पकडी जायें और सिर को पट्टों पर रखा जाये, तो उसे पश्चिम तन आसन कहते हैं । इस आसन से शरीर के अन्दर की हवा आगे से शरीर के पीछे के भाग की तरफ जाती है । इस से gastric fire को बढावा मिलता है, मोटापा कम होता है और मनुष्य की सभी बिमारियां ठीक होती हैं । (यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण आसन है)

मयुरासन

१. हाथों के तलवों को जमीन पर रखें और अपनी elbows को साथ साथ लायें । फिर पेट की धुन्नि (navel) को अपनी elbows के ऊपर रखें और इस प्रकार अपने भार को हाथों (elbows) पर टिकाते हुये, शरीर को डंडे के समान सीधा करें । इसे म्यूर आसन कहते हैं ।
२. इस आसन से जल्द ही सभी बिमारियां नष्ट हो जाती हैं, पेट के रोग मिट जाते हैं, और बलगम, bile, हवा आदि के विकारों को दूर करता है, भूख बढाता है और खतरनाख जहर का अन्त करता है ।

सेवासन

१. धरती पर मृत के समान लंबा लेटना, इसे शव आसन कहा जाता है । इस से थकावट दूर होती है और मन को आराम मिलता है ।
२. इस प्रकार भगवान शिवजी नें ८४ मुख्य आसन बताये हैं । लेकिन उन में से पहले चार सबसे जरूरी हैं । यहां मैं उन का वर्णन करता हूँ ।
३. ये चार हैं – सिद्धासन, पद्मासन, सिंहासन और भद्रासन । इन में से भी सिद्धासन बहुत सुखदायी है – इसका सदा अभ्यास करना चाहिये ।

सिद्धासन

१. अपने दायें पैर की एडी को अपने perineum (लिंग के नीचे की हड्डी) के साथ अच्छे से लगायें, और अपने दूसरी ऐडी को अपने लिंग के उपर रखें । अपनी ठोडी (chin) को अपनी छाती से लगायें और शान्ति से बैठें । अपनी इन्द्रियों को संयम कर, अपने माथे के बिच (eyebrows) की तरफ एक टक देखें । इसे सिद्धासन कहा जाता है – जो मुक्ति का द्वार खोलता है ।
२. इसे अपने दायने पैर को अपने लिंग (penis) के उपर और बायें को उसके साथ रख कर भी किया जा सकता है ।
३. कुछ लोग इसे सिद्धासन कहते हैं, कुछ वज्रासन भी कहते हैं । दूसरे कुछ लोग इसे मुक्तासन या गुप्तासन भी कहते हैं ।
४. जैसे कम खाना यमों में पहला यम है, और जैसे अहिंसा (किसी भी प्राणी की हिंसा न करना) पहला नियम है, उसी प्रकार ऋषियों ने सिद्धासन को सभी आसनों में प्रमुख बताया है ।
५. ८४ आसनों में सिद्धासन का सदा अभ्यास करना चाहिये क्योंकि यह ७२००० नाडियों को शुद्ध करता है ।
६. स्वयं पर ध्यान करते हुये, कम खाते हुये, और सिद्धासन का बारह वर्ष तक अभ्यास कर योगी सफलता प्राप्त कर लेता है ।
७. जब सिद्धासन में सफलता प्राप्त हो चुकी हो, और केवल-कुम्भक द्वारा प्राण वायु शान्त और नियमित हो चुकी हो, तो दूसरे किसी आसन की कोई आवश्यकता नहीं है ।
८. केवल सिद्धासन में ही अच्छी तरह स्थिर हो जाने से मनुष्य को उन्मनी प्राप्त हो जाती है और तीनो बंध भी स्वयं ही पूर्ण हो जाते हैं ।
९. सिद्धासन जैसा कोई आसन नहीं है, और ‘केवल’ जैसा कोई कुम्भक नहीं है । केचरी जैसी कोई मुद्रा नहीं है, और नाद (अनहत नाद) जैसी कोई लय नहीं है ।

पद्मासन

१. अपने दायें पैर को अपने बायें पट्ट पर रख कर, और बायें पैर को अपने दायें पट्ट पर रख कर, अपने हाथों को पीछे से ले जाकर पैरों की उंगलीयों को पकड कर बैठना । फिर अपनी ठोडी को छाती से लगाना और अपने नाक के अगले भाग की तरफ देखना । इसे पद्मासन कहा जाता है, यह साधक की बिमारियों का नाशक है ।
२. अपने पैरों को पट्टों पर रख कर, पैरों के तलवे ऊपर की ओर, और हाथों को पट्टों पर रख कर, हाथों के तलवो भी ऊपर की ओर ।
३. नाक के अगले भाग की तरफ देखते हुये, अपनी जीभ को ऊपर के दाँतों की जड पर टीका कर, और ठोडी को छाती के साथ लगाते हुये, धीरे से हवा को ऊपर की ओर खींच कर ।
४. इसे पद्मासन कहा जाता है, यह सभी बिमारियों का नाशक है । यह सब के लिये प्राप्त करना कठिन है, लेकिन समझदार लोग इसे सीख सकते हैं ।
५. दोनो हाथों को अपनी गोदी में साथ साथ रख कर, पद्मासन करते हुये, अपनी ठोडी को छाती से लगा कर, और भगवान पर ध्यान करते, अपनी अपान वायु को ऊपर का तरफ खीचते, और फिर साँस लेने के बाद नीचे को धकेलते – इस प्रकार प्राण और अपान को पेट में मिलाते, योगी परम बुद्धि को प्राप्त करता है शक्ति के जागने के कारण ।
६. जो योगी, इस प्रकार पद्मासन में बैठे, अपनी साँस पर काबू पा लेता है, वह बंधन मुक्त है, इस में कोई शक नहीं है ।

सिंहासन

१. दोनो ऐडीयों को अपने लिंग के नीचे वाली हड्डी से लगा कर ।
२. अपने हाथों को अपने पट्टों पर रख कर, अपने मूँह को खुला रख कर, और अपने मन को संयमित कर, नाक के आगे वाले भाग की तरफ देखते हुये ।
३. यह सिंहासन है, जिसे महान योगी पवित्र मानते हैं । यह आसन तीन बंधों की पूर्ति में सहायक होता है ।

भद्रासन

१. दोनो ऐडीयों को अपने लिंग के नीचे वाली हड्डि से लगा कर (keeping the left heel on the left side and the right one on the right side), पैरों को हाथों से पकड कर एक दूसरे से अच्छे से जोड कर बैठना । इसे भद्रासन कहा जाता है । इस से भी सभी बिमारियों का अन्त होता है ।
२. योग ज्ञाता इसे गोरक्षासन कहते हैं । इस आसन में बैठने से थकावट दूर होती है ।
३. यह आसनों का वर्णन था । नाडियों को मुद्राओं, आसनों, कुम्भक आदि द्वारा शुद्ध करना चाहिये ।
४. नाद पर बारीकी से ध्यान देने से, ब्रह्मचारी, कम खाता और अपनी इन्द्रियों को नियमित करता, योग का पालन करता हुआ सफलता को एक ही साल में प्राप्त कर लेता है – इस में कोई शक नहीं ।
५. सही खाना वह है, जिस में अच्छे से पके, घी और शक्कर वाले खाने से, भगवान शिव को अर्पित करने के पश्चात खाकर ¾ भूख ही मिटाई जाये ।

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