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Saturday 3 May 2014

सोमवार के समान ही प्रदोष का महत्व है।........सावन व्रत कथा........



महाशिवरात्रिः सावन में ऐसे होती है शिवरात्रि

-----------------------------------------------------------------------------कहते हैं सावन शिवरात्रि के दिन किए गए पूजन से ही भोले प्रसन्न हो जाते है और समस्त कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। यदि आज के दिन किया जाए पूर्ण विधि विधान के साथ शिव अभिषेक तो समझो सारे संकट पल में दूर हो जाएंगे।

माना जाता है कि आज के दिन भोले बाबा से जो मांगो वो मिलता है। इस दिन रुद्राभिषेक करने से समस्त पापों और दुर्भाग्यों का शमन होता है।

यह दिन काल सर्प दोष मुक्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है। कई शिव मंदिरों में इस दिन जातक अनुष्ठान करेंगे। भगवान शंकर को गंगाजल अर्पित करने के लिए कांवड़िए, हरिद्वार व गौमुख आ और जा रहे हैं।

स्कंद पुराण व शिव पुराण में भी इस दिन के महत्व का वर्णन है। इस दिन जो प्राणी उपवास करता है, उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

शारीरिक पीड़ा निवारण के लिए: शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की प्रतिमा और महामृत्युंजय यंत्र को लाल रंग के वस्त्र पर रखकर, उसकी 16 उपचारों से पूजा करें।

व्यापार वृद्धि के लिए: व्यापार वृद्धि यंत्र बाजार से लाकर या पंडित से बनवाकर उसको पीले कपड़े पर रखकर 16 उपचारों से पूजा कर दुकान के पूजा स्थल पर स्थापित करें।

केस व क्लेश से छुटकारे के लिए: पंचमुखी रुद्राक्ष की माला लेकर ओम नम: शिवाय का जाप करें और फिर इसे गले में धारण कर लें।

काल सर्प दोषमुक्ति के लिए: ब्रह्म मुहूर्त में शिव मंदिर में जाकर 16 उपचारों से शिव की पूजा करें। पूजा के बाद धतूरा चढ़ाकर 108 बार ओम नम: शिवाय का जाप करें और चांदी का नाग-नागिन शिवलिंग पर चढ़ाएं।

क्या होती है कांवड़?

भक्त अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के कलश में हरिद्वार, गंगोत्री व गौमुख से पैदल चलकर गंगाजल लाते हैं। सावन की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान शिव पर जल चढ़ाया जाता है। इसे कांवड़ लाना बोलते हैं। कांवड़ लाने के कई ढंग हैं, जैसे रुक-रुक कर, खड़ी कांवड़, डाक कांवड़ व एक टांग पर कांवड़ लाना।

श्रावण माह का विशेष महत्‍व और कैसे करें सावन में भगवान शिव की पूजा। ‘श्रावण मास’ की पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र होने से मास का नाम श्रावण हुआ और वैसे तो प्रतिदिन ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। लेकिन श्रावण मास में भगवान शिव के कैलाश में आगमन के कारण व श्रावण मास भगवान शिव को प्रिय होने से की गई समस्त आराधना शीघ्र फलदाई होती है। इस वर्ष श्रावण मास 9 जुलाई से आरंभ हो रहा है।

जो भक्त पूरे महीने उपवास नहीं कर सकते वे श्रावण मास के सोमवार का व्रत कर सकते हैं। सोमवार के समान ही प्रदोष का महत्व है। इसलिए श्रावण में सोमवार व प्रदोष में भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार श्रावण में ही समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। इसलिए इस माह में शिव आराधना करने से भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है।

सावन व्रत कथासोमवार के समान ही प्रदोष का महत्व है।

एक कथा के अनुसार जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया।

पार्वती ने सावन के महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया। यही कारण है कि सावन के महीने में सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए कुंवारी लड़कियों व्रत रखती हैं।
यहां ‘सावन’ में रोज 75 हजार भक्त करते हैं जलाभिषेक!

श्रावण मास में सोलह सोमवार का महत्‍व

श्रावण मास में भगवान त्रिलोकीनाथ, डमरूधर भगवान शिवशंकर की पूजा अर्चना का बहुत अधिक महत्व है।

भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए श्रावण मास में भक्त लोग उनका अनेक प्रकार से पूजन अभिषेक करते हैं। भगवान भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होने वाले देव हैं, वह प्रसन्न होकर भक्तों की इच्छा पूर्ण करते हैं। महिलाएं श्रावण से सोलह सोमवार का व्रत धारण (प्रारंभ) करती है, सुहागन महिला अपने पति एवं पुत्र की रक्षा के लिए कुंवारी कन्या इच्छित वर प्राप्ति के लिए एवं अपने भाई पिता की उन्नति के लिए पूरी श्रद्धा के साथ व्रत धारण करती है। श्रावण से सोलह सोमवार कुल वृद्धि के लिए, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए, सम्मान के लिए भी किया जाता है।

इस व्रत को प्रारंभ करने के लिए विशेष मुहुर्त एवं शिवजी का निवास का ध्यान रखना चाहिए। शिव अलग-अलग स्थान पर रहते हैं, अत: जिस दिन से आप सोमवार व्रत प्रारंभ करें। शिवजी का निवास अवश्य देखें। जिससे आप जिस उद्‍देश्य से शिवजी का व्रत रखें, वह पूर्ण हो।

क्योंकि शिवजी वृषभ पर बैठे हों तो लक्ष्मी प्राप्ति, गौरी के साथ हो तो शुभ, कैलाश पर बैठे हो, तो आपको सौख्य की प्राप्ति होती है। सभा में बैठे हों, तो कुल वृद्धि होती है। भोजन कर रहे हों तो अन्न की प्राप्ति, क्रीड़ा कर रहे हो, तो संतापकारक होता है। यदि शिवजी श्मशान घाट में हो तो मृत्यु के समान होता है अत: सोच-विचार करके सोलह सोमवार प्रारंभ करे।।।।।।।।।।।।।।।

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