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Saturday 3 May 2014


सुख, दीर्घायु व नीरोगत्व प्राप्त कराने वाला अदभुत स्तोत्र
आदित्य स्तोत्र
पारिवारिक सुख, दीर्घायु व नीरोगत्व प्राप्त कराने वाला अदभुत स्तोत्र 
विनियोग - अस्य श्रीआदित्यस्तोत्रस्य आंगिरस गषि:, त्रिष्टुप् छन्द: सूर्यो देवता, श्रीसूर्य प्रीत्यर्थे पाठे विनियोग:।
विनियोग :- ' अस्य से पाठे विनियोग:' तक पहले की भांति जल से विनियोग करें।
नवग्रहाणां सर्वेषां सूर्यादीनां पश्थक-पश्थक।
पीडा च दु:समा राजन् जायते सततं नश्णाम्॥1॥
रे राजन्! सूर्यादि नवग्रहों की पश्थक-पश्थक पीड़ा मनुष्यों को निरंतर असह्य होती है॥।1॥
पीडानाशाय राजेन्द्र नामानि श्शणु भास्वत: ।
सूर्यादीनां च सर्वेषां पीडा नश्यति श्शग्वत: ॥2॥
रे राजन्! पीड़ा नष्ट करने हेतु सूर्य के नामों को सुनने से सूर्यादि ग्रहों की पीड़ा नष्ट हो जाती है॥2॥
आदित्य: सविता सूर्य: पश्षाऽर्क: शीघ्रगो रवि: ।
भगस्त्वष्टाऽर्यमा हंसो हेलिस्तेजोनिधिर्हरि: ॥3॥
सूर्य, आदित्य, सविता, पूषा, अर्क, शीघ्रगति, रवि, भग, त्वष्टा, अर्यमा, हंस, हेलि, तेजोनिधि, हर नामों वाले हैं।
दिननाथे दिनकर: सप्तसप्ति: प्रभाकर: ।
विभावसुर्वेदकर्ता वेदागो वेदवाहन: ॥4॥
हरिदश्व: कालवक्त्र: कर्मसाक्षी जगत्पति: ।
द्बद्धप्रनीबोधको भानुर्भास्कर: करुणाकर: ॥5॥
दिनस्वामी, दिनकर, सप्तसप्ति, प्रभाकर, विभावसु, वेदकर्ता, वेदांग, वेदवाहन, हरिदश्व, कालमुख, कर्मसाक्षी, जगत्पति, पद्मनीबोधक, भानु, भास्कर, करुणाकर उन्हीं देव के नाम हैं॥4-5॥
द्वादशाऽत्मा विश्वकर्मा लोहिताग: स्तमोनुद: ।
जगन्नाथोऽरविन्दाक्ष: कालात्मा कश्यपात्मज: ॥6॥
भूताश्रयो ग्रहपति: सर्वलोकनमस्कृत: ।
जपा-कुसुम-सङ्काशो भास्वानदितिनन्दन: ॥7॥
द्वादशात्मा, विश्वकर्मा, लोहिर्तौं, स्तमोनुद, जगन्नाथ, कमलाक्ष, कालात्मा, कश्यपात्मज, भूताश्रय, ग्रहपति, सर्वलोक नमस्कृत, जपाकुसुमसम, भास्वान, अदितिनन्दन वे ही हैं॥6-7॥
ध्वान्तेभसिंह: सर्वात्मा सर्वनेत्रे विकर्तन: ।
मार्तण्डो मिहिर: सूरस्तपनो लोकतापन: ॥8॥
जगत्कर्ता जगत्साक्षी शनैश्चरपिता जय: ।
धन्वन्तरिव्याधिहर्ता दद्रु-कुष्ठ-विनाशन: ॥9॥
धवान्तेभ, सिंह सर्वात्मा, सर्वनेत्र, विकर्तन, मार्तण्ड, मिहिर, सूर, तपन, लोकतापन, जगत्कर्ता, जगत्साक्षी, शनैश्चरपिता, जय, धन्वन्तरि, व्याधिहर्ता, दद्रु विनाशन और कुष्ठ विनाशन उन्हीं सूर्य देव के नाम हैं॥8-9॥
चराऽचरात्मा मैत्रेयोऽमितो विष्णुर्विकर्तन:।
लोकशोकापहर्ता च कमलाकर आत्मभू: ॥10॥
नारायणो महादेवो रुद्र: पुरुष ईश्वर: ।
जीवात्मा परमात्मा च सूक्ष्मात्मा सर्वतोमुख: ॥11॥
इन्द्रोऽनलो यमृचैव नैर्गतो वरुणोऽनिल: ।
श्रीद ईशान इन्दुश्च भौम: सौम्यो गुरु: कवि:॥12॥
वे सूर्य देव चराचरात्मा मैत्रेय, अमित, विष्णु, विकर्तन, लोकशोकापहर्ता, कमलाकर, आत्मभू, नारायण, महादेव, रूद्र, पुरुष, ईश्वर, जीवात्मा, परमात्मा, सूक्ष्मात्मा, सर्वतोमुख, इंद्र, अनल, यम, नैगत, वरुण, अनिल, श्रीदायी, ईशान, इन्दु (प्रकाशक), भौम, सौम्य, गुरु और कवि नामों वाले भी हैं॥10-12॥
शौरिर्विधुन्तुद: केतु: काल: कालात्मकोविभु: ।
सर्वदेवमयो देव: कश्ष्ण: काम-प्रदायक: ॥13॥
सौरि, विधुन्तुद, केतु, काल, कालात्मा, विभु, सर्वदेवाधिदेव, कश्ष्ण, कामदायी वे ही हैं॥13॥
य एतैर्नामभिरर््मत्यो भक्त्या स्तौति दिवाकरम् ।
सर्वपापविनिर्मुक्त: सर्वरोगविवर्जित: ॥14॥
जो जन इन नामों से दिवाकर का स्तोत्र भक्तिपूर्वक स्तवन करता है वह पापमुक्त होकर रोगों से भी छूटता है॥14॥
पुत्रवान् धनवान् श्रीमान् जायते स न संशय: । 
सूर्यवारे पठेद्यस्तु नामान्येतानि भास्वत: ॥15॥
पीडाशान्तिर्भवेत्तस्य ग्रहाणां च विशेषत: ।
सद्य सुखमवाप्नोति चायुदीर्घं च नीरुजम् ॥16॥
वह पुत्रवान धनवान, कान्तिमान, निश्चय ही होता है। रविवार में इन नामों को पढ़ना चाहिए। उसकी ग्रहों की पीड़ा विशेष रूप से शांत हो जाती है। शीघ्र सुख दीर्घायु, नीरोगत्व प्राप्त होता है।

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