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Friday 25 April 2014

जिसके नतीजे पाप के रूप में सामने आते हैं पाप और पुण्य :- कई लोग कहते है कि मै पाप करता ही नहीं पाप कई प्रकार के होते है ........


जिसके नतीजे पाप के रूप में सामने आते हैं
पाप और पुण्य :-
कई लोग कहते है कि मै पाप करता ही नहीं पाप कई प्रकार के होते है मन से कर्म से और जानबूझकर वैसे संसार में पाप कुछ भी नहीं है, वह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है ,जो कुछ मनुष्य करता है, वह उसके स्वभाव के अनुकूल होता है और स्वभाव प्राकृतिक है। 
मनुष्य अपना स्वामी नहीं है, वह केवल परिस्थितियों का दास है - विवश है। वह कर्ता नहीं है, वह केवल साधन है। फिर पुण्य और पाप कैसा? 

संसार का हर व्यक्ति सुख चाहता है। लोगों के सुख के केंद अलग-अलग होते हैं। कुछ सुख को धन में देखते हैं, कुछ सुख को मदिरा में देखते हैं, कुछ सुख को व्यभिचार में देखते हैं, तो कुछ त्याग में देखते हैं - पर सुख हर व्यक्ति चाहता है। कोई भी व्यक्ति संसार में अपनी इच्छा से वह काम न करेगा, जिसमें उसे दुख मिले। यही मनुष्य के मन की प्रवृत्ति है।

धर्मशास्त्रों की बातों पर गौर करें तो मोटे तौर पर कर्मों के दो परिणाम बताए गए हैं - पाप और पुण्य। जहां पाप सुखों से वंचित कर दु:ख का कारण बनते हैं, वहीं पुण्य, पापों को कम या मुक्त करने वाले माने गए हैं। 

अक्सर देखा जाता है कि इंसान पाप कर्मों से तो जल्द जुड़ता है, वहीं सद्कर्मों और पुण्य कर्मों को लेकर अधिक सोच-विचार करता और वक्त लेता है। 

शास्त्रों में ऐसी प्रवृत्ति के पीछे 5 खास बातें बताई गई हैं, जिनके चलते सांसारिक जीवन में हर कोई जाने-अनजाने पाप कर बैठता है। 
इसलिए पापों से बचने के लिए इन बातों को सामने रख कर्म, विचारों और व्यवहार पर हमेशा ध्यान व मंथन जरूरी बताया गया है। 

जानते हैं ये 5 बातें - 

लिखा गया है कि - 
अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशा: क्लेशा:।। 
संदेश है कि इन पांच कलह के वश में होने से पाप होते हैं। ये पांच क्लेश हैं- 

अविद्या - अज्ञान का रूप है। सरल शब्दों में समझें तो हर स्थिति और विषय को लेकर सही समझ का अभाव। जिससे बुरे कर्म या सोच में भी सुख और अच्छा लगता है, जिसके नतीजे पाप के रूप में सामने आते हैं। 

अस्मिता - मैं या अहं भाव। जिसे मन, मस्तिष्क व विचारों को जकडऩे वाला माना गया है। रावण, हिरण्यकशिपु या कंस भी इस दोष के कारण पाप कर्म में लिप्त होकर दुर्गति को प्राप्त हुए। 

राग - आसक्ति का ही एक नाम, जो अच्छे-बुरे की समझ से दूर कर इंद्रिय असंयम का कारण बन पाप करवाती है। 

द्वेष - मनचाहा न होने पर दु:खी और क्रोधित होने का भाव, जिससे कर्म, विचार और व्यवहार में दोष पैदा होता है। 

अभिनिवेश - मौत का भय। हर इंसान यह जानते हुए भी कि मृत्यु अटल है, इससे बचने के लिए किसी न किसी रूप में तन, मन या धन का दुरुपयोग कर पाप कर्म करता है।
आइये जानते है कि किसके अंदर पाप नहीं है ,पाप के भेद और ना करने का संकल्प 
विचार :- मित्रों मै आज आपको पाप के 18 भेद बताने जा रहा हू
१.प्रणतिपात- जीव हिंसा
२.मृषावाद- झूठ बोलना
३.अदतादान - चोरी करना
४.मैथुन -कुशील या अभ्रमचार
५.परिग्रह- आवश्यकता से अधिक जोड़ने की इच्छा करना
६.क्रोध - गुस्सा करना
७.मान- धमंड करना
८.माया - छल करना
९.लोभ - लालच करना
१०.राग - किसी से मोह करना
११.द्वेष- किसी से इर्ष्या करना
१२.कलह - झगडा रखना
१३.अभ्याख्यान - कलंक लगाना
१४.पैशुन्य- चुगली करना
१५.पर-परिवाद -दूसरों की निंदा करना
१६.रति-अरति -धर्म में मन ना लगना और ही काम में लगे रहना
१७.माया मरिषावाद -कपट रख कर झूठ बोलना
१८.मिथ्यादर्शनशल्य -गलत श्रद्धा रखना 

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