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Friday 25 April 2014

गुरुतत्व जागरण साधना. साधना का परावैज्ञानिक दृष्टिकोण देखें तो यही स्पष्ट होता है की साधना के दौरान साधक मन्त्रों के .................


कार्य पूर्ण होता ही नहीं | आखिर ऐसा क्यूँ?
गुरुतत्व जागरण साधना. 
साधना का परावैज्ञानिक दृष्टिकोण देखें तो यही स्पष्ट होता है की साधना के दौरान साधक मन्त्रों के ध्वनात्मक प्रयोग से ऐसी ऊर्जा उत्पन्न करता है जिससे उसके अभीष्ट की सिद्धि हो सके | पर कुछ लोंगों के मंत्र बखूबी कार्य करते हैं और बाकी के ब्रह्माण्ड में विलीन हो जाते हैं | वे साधक के पास टिकते ही नहीं, कार्य पूर्ण होता ही नहीं | आखिर ऐसा क्यूँ? ऐसा इसलिए क्यूंकि साधक में वो चुम्बकत्व , वो गुरुत्व नहीं जिससे वो उस शक्ति को अपने अन्दर पूर्ण रूप से समाहित कर सके और स्थायी रूप से रोक सके | अच्छा आपको पता है की तंत्र में पारद के विग्रह, गुटिका इत्यादि का इतना महत्व क्यूँ है ? क्यूंकि पारद में वो क्षमता होती है जिससे उसमे मन्त्रों की शक्ति का संचय किया जा सके... 
इसका उत्तर है गुरु तत्व जागरण साधना..इस साधना से साधक के पूरे शरीर में वो गुरुत्वाकर्षण आ जाता है जिससे मंत्र स्वतः उसके शरीर में समाहित होकर पूर्णता प्रदान करते ही हैं..साधना सफल होती ही है..फिर किसी गंडे या तावीज़ की आवश्यकता नहीं पड़ती..जैसे जैसे साधक साधनाएं करता जाता है , वो मन्त्र स्वरुप होता चला जाता है..नीचे गुरु तत्व जागरण साधना दी जा रही है..वैसे इसके कई विधान हैं..पर सबसे आसान वाला दे रहा हूँ..

वस्त्र:- श्वेत |
दिशा:- पूर्व |
माला:- रुद्राक्ष |
मंत्र:- || ॐ द्रां मम आत्म –प्राण चैतन्य जाग्रय ह्रीं गुरु तत्व स्फोटय द्रां फट ||
जप संख्या:- २१ माला |
और जैसा की मैं हमेशा कहता हूँ..किसी भी साधना में ध्यान की प्राथमिकता होती है..अतः ध्यान अकाट्य हो..

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