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Friday 25 April 2014

आवागवन के बंधन में जकड़ने के लिए मजबूर हो जाएगे देहधारी को दंड है बच सके न कोय | ज्ञानी भोगे ज्ञान से अज्ञानी भोगे रोय || ...........


आवागवन के बंधन में जकड़ने के लिए मजबूर हो जाएगे
देहधारी को दंड है बच सके न कोय |

ज्ञानी भोगे ज्ञान से अज्ञानी भोगे रोय ||

भौतिक जगत में दुःख तो सभी को भोगने पड़ते हैं | चाहे कोई सांसारिक व्यक्ति है या संत महापुर्श | जिस प्रकार बच्चा डाक्टर से डरता है | डाक्टर के नाम से रोने लगता है | टीका लगवाने की बात सुनकर ही रोने लगता है क्यों की अज्ञानी है | वह जानता नहीं है की टीका लगवाने से स्वयं का ही लाभ होगा | लेकिन बुद्धिमान मनुष्य जो की डाक्टर के पास जाता है | उस से अपनी बीमारी स्पष्ट कहता है | डाक्टर टीका लगाता है | वह व्यक्ति फीस प्रदान करता हुआ उसका धन्वाद करता हुआ और प्रसन्न चित्त घर आ जाता है क्यों की ज्ञानी है | जानता है कि डाक्टर ने किस प्रकार मेरी भलाई चाहते हुए रोग का इलाज किया |

ठीक इसी प्रकार संसार में सुख-दुःख सभी पर आते हैं चाहे कोई संत है या सांसारिक व्यक्ति | परन्तु सांसारिक व्यक्ति दुःख मिलने पर रोता है,जब कि संत दुःख की चिन्ता नहीं करते | वह हँसते - हँसतें दुखों को भोग जाते हैं क्यों की वह बालक के सामान अज्ञानी नहीं है,वरन ज्ञान से जुड़े होने के कारण जानते हैं कि कर्मो का फल तो भोगना ही पड़ेगा | केवल ज्ञान की अग्नि ही ऐसी अग्नि है जो कर्म के बीज का नाश कर देती है |इस लिए यदि जीवन में सुख एवं शांति की प्राप्ति करना कहते हैं तो हमें जरूरत है कि पूर्ण सतगुरु की शरण में पहुँच कर आतमज्ञान को प्राप्त करें | तभी हम जीवन को सुखमय बना सकते हैं | यदि हम बुद्धि के द्वारा ही कर्मों का इलाज करते रहे ,तो केवल कर्मों के बन्धनों को बढाने के अतिरिक्त अन्य किसी सफलता की प्राप्ति नहीं कर सकते | अंतत जन्म - मरण के भयानक आवागवन के बंधन में जकड़ने के लिए मजबूर हो जाएगे |

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