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Monday 28 April 2014

उसके लिए कुछ किया रात सॉकर गवा दी , दिन खा कर, बचपन खेलेने कूंदने में , जवानी भोग भोगने मे , बुढ़ापा रोगो मे । कोहिनूर जैसे मानव-जन्म को , कौड़ी के भाव गँवा दिया । मनुष्य की यही स्थिति है .....


उसके लिए कुछ किया
रात सॉकर गवा दी , दिन खा कर, बचपन खेलेने कूंदने में , जवानी भोग भोगने मे , बुढ़ापा रोगो मे । कोहिनूर जैसे मानव-जन्म को , कौड़ी के भाव गँवा दिया । मनुष्य की यही स्थिति है , उसने शरीर को तो जान लिया परन्तु जीवन को भूल गया। आज हम जिसे जीवन कह रहे है , वो तो पल पल मृत्यु की ओर बढ़ रहा है । हम कहते है हमारे जीवन के तीस या चालीस वर्ष व्यतीत हो गए किन्तु ये तीस चालीस वर्ष तो हमारे जीवन से कम हो गये , हम निरंतर मृत्यु के निकट पहुचते जा रहे है। 

दूसरे के घर मे चोरी हो जाये, तो हम अपने दरवाजे जाचते है , कही हमारे यहा चोर न आ जाये, पर काल का फंदा आए दिन किसी को लटका के ले जाता है , और हम अपने कर्मो को अपने जीवन को नहीं जाचते? हम देखते है लोग जाते है कुछ साथ नहीं जाते, फिर भी हम निरंतर एकत्रित करने मे लगे रहते है । अगर हम जीवन की वास्तविकता को नहीं जान लेते , तो इन सब का क्या लाभ ? विवाह का , भोगो का, धन का , प्रेम का , सांसारिक पदार्थो का क्या लाभ ??

मृत्यु के बाद का भी तो कोई जीवन है न, उसके लिए कुछ किया ?? इसलिए जो भी आवश्यक है वो करो किन्तु साथ साथ इस जीवन के पश्चात का जो जीवन है, उसका भी सोचो । ये जीवन सत्य नहीं है , सत्य कुछ और है , उस सत्य को सदैव जानने हेतु प्रयत्नरत रहो ... जंगल मे जाने की जरूरत नहीं , साधु -संत बनना भी अनिवार्य नहीं , घर पर रहकर ही सदैव प्रयासरत रहना चाहिए.... 

कठोपनिषद मे आता है --- इह चेदशकद् बोद्धु प्राक् शरीरस्य विश्रस .......॥ 

यदि शरीर का पतन होने से पूर्व मनुष्य ने उस परमात्मा को नहीं जाना तो जीवात्मा को अनेक कल्पो तक विभिन्न योनियो एवं लोको मे भटकने को विवश होना पड़ता है । इसलिए जीवन के सत्य को जानो , धर्म को धारण करो और परमात्मा को जानो, उससे प्रेम करो , उसकी ओर कदम बढ़ाओ ।

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