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Monday 14 April 2014

क्या आपको लगता है कि हम वास्तव में प्रभु को चाहते हैं, उनका दर्शन करना चाहते हैं .......


दुविधा मैं दोनों गये माया मिली ना राम.
क्या आपको लगता है कि हम वास्तव में प्रभु को चाहते हैं, उनका दर्शन करना चाहते हैं और इस आनन्द से बड़ा कोई भी आनन्द संसार में नहीं है । प्रभु सर्वत्र हैं, प्रभु सब समय हमें देख रहे हैं, वे हमारे ढोंग-पाखन्ड को भी देख रहे हैं, हममें दूसरों के कल्याण की कैसी भावना है, वह, यह भी देख रहे हैं । हम इतने बुद्धिमान हैं कि प्रभु को भी पल-पल धोखा देना चाहते हैं और देते भी रहते हैं परन्तु वह परम दयालु और अकारणकरूणावरूणालय हमारी नादानी पर मुस्कराते हुए हमें निज स्वभाववश क्षमा करते रहते हैं और हमें लगता है कि हम इतने बुद्धिमान हैं कि प्रभु हमारे छ्ल को समझ नहीं पाये। हम दो नावों की सवारी करते रहना चाहते हैं। हमें भरपूर माया भी चाहिये और पूर्ण ब्रह्म भी, वह भी बिना किसी उद्योग या परिश्रम के । अंधकार और सूर्य का प्रकाश दोनों एक साथ हो ही नहीं सकते । हमने अपने घर के सभी द्वार और झरोखे बंद कर लिये हैं और घर के अंदर से जोर-जोर से आवाज लगाते रहते हैं कि हमें प्रकाश चाहिये, हम प्रकाश के प्रेमी हैं । कल्पना कीजिये या विश्वास कीजिये कि आज ब्राह्म-मूहूर्त से लेकर रात्रि पर्यन्त प्रभु मेरे साथ रहेंगे और इस बात को पूरे दिन याद रखिये, कोई भी कार्य करते समय, किसी के भी साथ वार्तालाप करते समय, रास्ते में चलते समय, किसी को देखकर ह्र्दय में उमड़्ती भावनाओं के बारे में विचार करने पर, और आप पायेंगे कि पूरे दिन में कई बार आप चाहेंगे कि काश प्रभु कुछ देर के लिये आपके साथ न रहें ताकि हम कुछ कार्य अपने मन का भी कर सकें । यही कसौटी है जिससे हम मालूम कर सकते हैं कि क्या हम वास्तव में प्रभु को चाहते हैं या संसार को दिखाने के लिये, पुजने के लिये, सम्मान पाने के लिये ही हम नाटक कर रहे है । 
यदि हम वास्तव में अपना कल्याण चाहते हैं तो कल्याण के लिये विशेष बात है - लगन । जैसे अन्न की भूख लगे, जल की प्यास लगे, इसी प्रकार भगवान की लगन ऐसी लगे कि उससे मिले बिना जीवन भार हो जाये तो भगवान का मिलन हो जायेगा !
दुविधा  मैं  दोनों  गये  माया  मिली  ना  राम। .... पं म डी वशिष्ट 

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