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Wednesday 30 April 2014

प्रश्न :- मोक्ष किसे कहते हैं ? उत्तर :- वह अवस्था जिसमें मनुष्य तीनों प्रकार के दुखों से दीर्घकाल के लिये अत्यंत रहित हो जाता है । उसे मोक्ष कहा जाता है । .....


अविवेक कैसे होता है

प्रश्न :- मोक्ष किसे कहते हैं ?
उत्तर :- वह अवस्था जिसमें मनुष्य तीनों प्रकार के दुखों से दीर्घकाल के लिये अत्यंत रहित हो जाता है । उसे मोक्ष कहा जाता है । 

प्रश्न :- वे तीन प्रकार के दुख कौन से हैं ?
उत्तर :- वे दुख ये हैं :------ १) अध्यात्मिक २) आदिभौतिक ३) आदिदैविक 

प्रश्न :- आध्यात्मिक दुख किसे कहते हैं ?
उत्तर :- यह दो प्रकार का है १) आध्यात्मिक शरीर दुख २) आध्यात्मिक मानस दुख 
१) आध्यात्मिक शरीर दुख : जो दुख हमें शारीरिक कष्ट भोजन की विषमता,रोग,ज्वर,पीड़ा आदि के द्वारा होता है । उसे ही हम आध्यात्मिक शरीर दुख कहते हैं ।
२) आध्यात्मिक मान्सिक दुख : जो हमें मन की चंचलता, इन्द्रीयों की चंचलता, तनाव, आदि के द्वारा होता है । उसे हम आध्यात्मिक मान्सिक दुख कहते हैं ।

प्रश्न :- आदिभौतिक दुख किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जो दुख हमें बाहरी रूप से प्राप्त हो जैसे कि कोई हमारा अपमान कर दे, कुत्ता या साँप हमें काट ले, हमें कोई मारे पीटे गाली दे या फिर बाहरी तौर पर हमें कोई कष्ट या यात्ना दे ,उसे हम आदिभौतिक दुख कहते हैं । यानि कि जो भौतिक रूप से प्राप्त हुआ हो । 

प्रश्न :- आदिदैविक दुख किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब कोई भुकम्प आये , बिजली घिरे, तुफान या और प्रकृतिक आपदा आये तो ये दुख जो इन आपदाओं से प्राप्त होते हैं उनको आदिदैविक दुख कहते हैं ।

प्रश्न :- यह तीनों दुख कैसे प्राप्त होते हैं ?
उत्तर :- अविवेक के द्वारा प्राप्त होते हैं । 

प्रश्न :- अविवेक क्या है ?
उत्तर :- जड़ प्रकृति और चेतन आत्मा के भेद का ज्ञान न होना ही अविवेक है ।

प्रश्न :- अविवेक का उपाय क्या है ?
उत्तर :- इसका उपाय विवेक है ।

प्रश्न :- विवेक क्या है ?
उत्तर :- जड़ और चेतन आत्मा के भेद का साक्षात ज्ञान ही विवेक है ।

प्रश्न :- अविवेक कैसे होता है ?
उत्तर :- जब आत्मा प्रकृति के सम्पर्क में आता है तब वह प्रकृति रूप हो जाता है , अपने आप को प्रकृति का भाग समझने लगता है । जैसे गहरे लाला रंग के फूल को स्फटिक मणि ( सफेद पत्थर ) के पास लाओ तो वह पत्थर भी लाल रूप हो कर दिखने लगता है , ठीक वैसे ही प्रकृति के सम्पर्क में आत्मा आता है तो प्रकृति का जड़त्व धर्म उसमें भासित सा होता है और यही अविवेक की अवस्था है कि मनुष्य अपने को प्राकृतिक शरीर ही समझता है आत्मा और शरीर में भेद नहीं जानता इसी को हम सांख्य भाषा में अविवेक कहते हैं । 

प्रश्न :- तो इस विवेक का उपाय क्या है ? 
उत्तर :- योगाभ्यास की रीति से मनुष्य के ज्ञान में जब वृद्धि होती जाती है तो यह स्वयं ही अनुभव होने लगता है कि आत्मा और प्रकृति भिन्न हैं । इसी को हम आत्म साक्षात्कार कहते हैं । जैसे लाल रंग के फूल को स्फटिक मणि के पास से हटाओगे तो उसका सफेद रंग स्पष्ट दिखने लगेगा ठीक वैसे ही जब आत्मिक ज्ञान की वृद्धि होती जाएगी तो ये प्राकृति की छाया आपके आत्मा से हटती जायेगी और आपको अपने अन्दर का चेतन तत्व स्पष्ट होता जाएगा । 

प्रश्न :- आपने बताया और हमने जान लिया कि आत्मा और प्रकृति अलग अलग हैं तो फिर मेरे दुख दूर क्यों नहीं हुए ? मुझे मोक्ष प्राप्त हो जाना चाहिए था वो क्यों नहीं हुआ ?
उत्तर :- मेरे मीठा कह देने से क्या आपका मूँह मीठा हो जायेगा ! वह तब तक न होगा जब तक कि आप स्वयं मीठा न खा लें । वैसे ही जब तक योग विधि के द्वारा आप अभ्यास न करेंगे तब तक आपको विवेक प्राप्त न होगा । उसका अनुभव आपको योग की उच्च अवस्था में होगा । जहाँ क्रमानुसार अज्ञान हटता जायेगा ।और ज्ञान बढ़ता जाएगा । केवल शब्द ज्ञान से ही मोक्ष नहीं होता । 

प्रश्न :- तो यह बतायें कि प्रकृति सम्पर्क तो मृत्यु के उपरांत ही हटेगा तो क्या मर के मोक्ष मिलता है ?
उत्तर :- मौत को कभी हमारे तत्वदर्शी ऋषियों ने मोक्ष की संज्ञा नहीं दी है , हाँ यह प्रकृति का सम्पर्क हमारे साथ रहता है परंतु जब तक हम आत्मा को शरीर और शरीर को आत्मा समझते हैं तब तक प्रकृति हमारे सम्मुख भोग उपस्थित करके हमें व्यथित करती रहती है । पर मोक्ष की अवस्था सामान्य अवस्था से भिन्न इसी कारण है क्योंकि मोक्ष में हम प्रकृति के अधीन नहीं रहते हैं । प्रकृति तब तक हमारे लिये भोग सम्पादित करती है जब तक कि पूर्ण विवेक न हो जाये । पर विवेक हो जाने पर वो अपना कार्य वहीं बंद कर देती है । ऋषि के लिये वो केवल साधन के रूप रह जाती है , स्थित प्रज्ञ मुनि उसमें आकर्षित नहीं हो पाता ।

प्रश्न :- तो फिर क्या उस अवस्था में शरीर की मृत्यु हो जाती है ?
उत्तर:- नहीं ,जब तक जीवन है योगी उस शरीर में जीवन को भोगता है परंतु वह आगे आने वाले शारीरिक बंधनों से छूट जाता है । उसका पुनर्जन्म नहीं होता । जब वह उस शरीर को त्यागता है तो ईश्वर के आनंद में उसका आत्मा रमण करता है । 

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