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Tuesday 26 April 2016

बुरे कर्मों का भोग समाप्त हो जाएगा। कोई शनि , कोई बुध , कोई राहु , केतु , कोई मंगल हमारा अमंगल नही करता है । हमारा अपना कर्म - कुकर्म , अपने द्वारा किया धर्म - अधर्म ....

बुरे कर्मों का भोग समाप्त हो जाएगा।
कोई शनि , कोई बुध , कोई राहु , केतु , कोई मंगल हमारा अमंगल नही करता है । हमारा अपना कर्म - कुकर्म , अपने द्वारा किया धर्म - अधर्म जब हाथ धोकर कभी शनि बन कर तो राहुlifecanbechanged.com , केतु बन कर हमारे पीछे पड़ कर हमे दुख के भंवर में धकेल देता है तो हम लगते हैं बाप बाप करने और दौड़ने लगते हैं मंदिर मंदिर , ज्योतिष् के यहां , बड़े बड़े कर्मकाण्डी पण्डितों को यहां । फिर गंभीर रुप से ठगे जाते हैं । कोई जयोतिष , कोई पण्डित , कोई चढ़ावा किसी भी मंदिर में , हां नोट कर लीजिये , कोई भी चढावा हमारे दुर्भाग्य को सौभाग्य में नही बदल सका, न बदलेगा । भगवान घूस खोर नही हैं । संसार में रिश्वत चलती है भगवान के यहाँ नहीं। अपने किये गय कुकर्मो को मिटाने के लिये भगवान को खरीदने की भूल कदापि न करें । हम गुनाह करेंगें तो उसकी सजा निश्चित है। भगवान या कोई वास्तविक संत आपके पाप को मिटा नही सकता है । यह भगवान का कानून है । वह अपने कानून को खुद भी नही मिटा सकते । सामर्थ्य है परन्तु कदापि नही मिटायेंगे। अरे!प्रारब्ध तो महापुरुषों को भी भोगना पड़ता है साधारण कि कौन कहे।
यह गाना गाने से काम नही चलेगा कि - माँ मुरादे पुरी करदे हलुआ बाँटूंगी । मुर्ख है जिसने ये गाना बनाया और उससे भी बड़ा मुर्ख है जो ऐसे गानों को झूम-झूम के गाता है । एक अक्षर का सिद्धांत ज्ञान तत्त्व ज्ञान है नहीं, व्यापार बना दिया है भगवान को भी।
बदलना है तो अपने कर्मों को , अपनी सोच को , अपने धर्म को ठीक करिये , संकल्प करिये भगवान को साक्षी मान कर कि हे प्रभु हम अब आपकी शरण में है। वास्तविक ह्दय से मन से सदा के लिय अपने को , खुद को आपके चरणों में समर्पित करता हूं । और फिर दुबारा कभी गलत बात न करें न सोंचें । सब ठीक हो जाएगा । बुरे कर्मों का भोग समाप्त हो जाएगा। आप सजा भोग लेगें फिर सब ठीक हो जाएगा , वर्ना कुछ भी ठीक नही हो सकता।
भगवान अपने बनाए कानून में स्वयं बंधे हैं ।उन्होने अपने बाप दशरथ को नही बचाया , भांजे अभिमन्यु को नही बचाया तो हम आप कितने पाप करके बैठे हैं अनंत जन्मों में खुद नही जानते ।
केवल वास्विक शरणागति ही एक रास्ता है । वर्ना जबतक पूर्व जन्म का पुण्य पुँज है । सब मिलेगा । पाप करते करते पूर्वजन्म का पुण्य पुँज समाप्त ,अब तुम हो जाओगे भिखारी रातों रात , कोई पण्डित , ज्योतिष , ज्ञानी , विज्ञानी , तंत्र , मंत्र , गंगा स्नान , तीरथ वीरथ , तप , जप , पुजा पाठ , यज्ञ , हवन काम नही देगा ।
हमारा पाप ही जब खुद शनि, राहु केतु बन कर जब खड़ा हो जाएगा तो कोई शनि मंदिर में तेल वेल , दीया-दीपक कितना जलालें , कुछ काम नही देगा ।
कितने मुरख पण्डित होते हैं खुद देखें , मृत्यु शैया पर पड़े लोगों को बचाने के लिये महामृत्युंजय जाप करवाने के लिय बोलते हैं। जबकि महामृत्युंजय मंत्र का मतलब है पढ़िये अन्तिम पंक्ति मंत्र की :-

ऊरुवारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मोक्षीयमामृतात्

यानि हे प्रभु हमे जन्म मरण के चक्कर से मुक्त करो और मोक्ष दो ।

'यानि मरते हुये को शरीर से छुटकारा दिला कर हमेशा के लिय जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्त कर दो '।
यह मंत्र यह कहीं नही कहता कि हे प्रभु इसको स्वस्थ करके जीवन दान दो।
तो जरा सोचिये कितने मूर्ख पण्डित लोग हैं। ज्योतिष लोग है जो खुद मंत्र के अर्थ तक को नही जानते।तो वो क्या कल्याण करेगा हमारा

Saturday 19 March 2016

Brahmins Generation and their Gotra system. Brahmin gotra system....www.lifecanbechanged.com

Brahmin gotra systemwww.lifecanbechanged.com 
The word "gotra" means "lineage" in the Sanskrit language. Among those of the Brahmin caste, gotras are reckoned patrilineally. Each gotra takes the name of a famous Rishi or sage who was the patrilineal forebearer of that clan. And each Gotra is addressed by the suffix 'sa' or 'asa' as relevant.
The concept of Gotra was the first attempt among Brahmins to classify themselves among different groups. At the beginning, these gents identified themselves by the names of various rishis (Angirasa, Atri, Gautam, Kashyapa, Bhrigu, Vasistha, Kutsa,and Bharadwaja; the first seven of these are often enumerated as Saptarishis). It is to be noted that Vishwamitra was initially a Kshatriya king, who later chose and rose to become an ascetic rishi. Hence the gotra was applied to the grouping stemming from one of these rishis as his descendants.
List of Brahmin Gotras
The following is a partial list of gotras found in the Brahmin community of Hindus:
 Agastya, Atreyasa / Atri, Alambani, Angad, Angirasa, Ahabhunasa, Aupamanyava,
 Babhravya, Bharadwaja, Bhargava, Bhakdi, Bhaskara, 
 Chandilya, Charora, Chikitasa, Chyavana, 
 Dalabhya, Darbhas, Dhananjaya, Dhanvantari, 
 Galvasaya, Garga, Gautamasa, Gaubhilya,
 Harita/ Haritasa, Hukman Bhal, 
 Jamadagni, Jatukarna, 
 Kalabodhana/ Kalaboudha /Kalabhavasa, Kamakayana Vishwamitra, Kanva, Kaushikasa, Kapi, Kapil, Karmani, Kashyapasa, Kaundinyasa, Kaunsh, Kaushal/ Kaushalas / Kushal, Kaushik/Koshik/Koushik, Kushika, Kaustubha, Kausyagasa, Kavist, Katyayana, Krishnatriya or Krishnatreeya, 
 Kundina Gowtama,Kutsa, Kutsasa
 Lakhi, Lohit, Lohita-Kowsika, Lomasha, 
 Mandavya, Marichi, Markandeya, Mauna Bhargava, Matanga, Maudgalya Moudgalya, 
 Mudgala (Maudgalya, Moudgil, Modgil, Mudgal), Mudgal
 Naidhruva, Nithunthana/Naithunthasa, Nydravakashyapa, Nrisimhadevara, 
 Parashara, Parthivasa, Pouragutsya, Ratheetarasa, Purang, Pradnya, Pratanansya
 Rathitara, Rohinya, Rauksaayana, Roushayadana,
 Saminathen, Sanatana, Salankayana, Sangar, Sanaka, Sanaga, Sanjaya, Sankhyayana
 Sankrithi(Sankrityayan), Sankyanasa, Sathamarshana, Shandilya , sanas, Sandilyasa, Shandelosya,
 Saawarna, Saharia Joshi, Sauparna, Savaran, Savita. Somnasser, Saankritya(Sakarawar), 
 Soral, Srivatsa, Sumarkanth, Suryadhwaja, Shaktri, Shaunaka, Surya, Swatantra Kabisa, Suparna,
 Tugnait * Upamanyu, * Upadhyay, Utsasya, 
 Vadula, Valmiki, Vardhviyasa, Vardhulasa, Vardhyswasa, Vashishta, Vatsa, Vatsyayan, Veetahavya, Vishnu, Vishnuvardhana, Vishnuvruddha, Viswamitra, Vishvagni, Vartantu, Vishwagni, Vaidya/Baidya,
 Yaska
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Brahmin communities
Brahmin communities in India are traditionally divided into two regional groups: Pancha-Gauda Brahmins and Pancha-Dravida Brahmins according to the following shloka found in the Rajatarangini of Kalhana (12th century):

कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः ।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे ॥
सारस्वताः कान्यकुब्जा गौडा उत्कलमैथिलाः ।
पन्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासिनः ॥
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः ।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे ॥
सारस्वताः कान्यकुब्जा गौडा उत्कलमैथिलाः ।
पन्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासिनः ॥

"The Karnatakas, Tailangas, Dravidas, Maharashtrakas and Gurjaras; these five (-types who- ) live south of Vindhya (- mountains) are (called-) "Dravida" (- brahmins); (whereas-) Saraswatas, Kanyakubjas, Gaudas, Utkalas, and Maithilas, who live north of Vindhya (- mountains) are known as "five Gauda" (- brahmins)."
The shloka only identifies the caste-system present on the basis of their regional presence. The classification of Brahmins, the highest varna, on the basis of Region is debatable (compare the Brahmin gotra system).
Pancha-Gauda
Main article: Pancha-Gauda
Those from Uttarapatha (Aryavarta) (northern and eastern India.)
Approximately ordered according to geographical regions, from West to East
Saraswat
 Kashmiri Pandits
 Mohyal Brahmins
 Rajapur Saraswat Brahmins
 Gouda Saraswat Brahmins
 Punjabi Saraswat Brahmins
 Rajasthan Saraswat Brahmins
 Chitrapur Saraswat Brahmin
 Nasarpuri Sindh Saraswat Brahmin
 Brahmbhatt Brahmin
Kanyakubja
 Kanyakubja Brahmins
 Saryupareen Brahmins
Gauda
 Khandelwal Brahmin
 Kota Brahmin
 Dadhich Brahmin
 Gaur Brahmin
 Sanadhya Brahmin
 Shri Gaur Malviya Brahmin
Sanskrit gauḍa is a vrddhi derivation of guḍa, literally "sugar molass", but also the name of a tribe of the Madhyadesha. A school of thought believes that Gauda is sometimes taken to mean the Gaur region of Bengal. However the original meaning of the term coincides with region termed as Brahmakshetra:
ब्रह्मक्षेत्रं गुडारण्यं मत्स्यपाञ्चालमाथुराः
एष ब्रह्मर्षि देशो वै ब्रह्मावर्त समम्बरम् ॥
ब्रह्मक्षेत्रं कुरुक्षेत्रं ब्रह्मदेशः प्रकथ्यते
आदिगौदर्षिदेशान्तं हर्यारण्यमिहोच्यते ॥
Bengali Brahmins
Utkal(Orissa) Utkala Brahmins
Maithil Brahmin (Mithila) Maithil Brahmins

Pancha-Dravida (Five Southern)
Those from Dakshinapatha (South India, including Gujarat and Maharashtra).
Gujarat 
Trivedi Mewada Brahmin ,Migrated from Mewad, Rajasthan during time of Great King Rana pratap to Gujarat some 434 years ago. i.e 1576 to 1590 (Since battle of Haldighati was happened during June, 1576). But prior to that only as a precautionary steps King Ranasinh Pratap has requested Brahmin Community to migrate to safe place (being Akbar was Muslim emperor and may take wrong steps on Brahmin Community, since Brahmin were doing all Prayers for GOD in those days). But King Ranasinh Pratap requested that you should be continue worshiping Eklanji Mahadev only. Which is still continued by all Mewada Brahaman Community.
As per some articles (source: Book in Gujarati -"Dabo Melyo Mewad") it is understood that during 1280 under the leadership of Mr. Mahanand Trivedi 999 Brahmin shifted from Mewad towards Gujarat and near Tahsil: Bhiloda there is a Village called "Narsoli" they established Eklingji Shivalay. This migration is due to contineous Muslim attacks on Mewad and harassing Brahmin community specifically. In the same book it is referred that during 1303 Allhuddin Khilji has killed 640,000 brahim male members and thrown their scared thread (Janoi / Ugnopavit / Upnayan / Janva) in 1600 litters of blood. As per some views there were 10,000 brahmins and blood sheds were abouts 30 litters. To avoid these mass killings Brahmin community migrated towards Gujarat.
Also you get website like http://www.brahmsamaj.org 
Rajgor Brahmin
 Bhatt Mewada Brahmin ,Migrated from Mewad, Rajasthan during time of Great King Rana pratap to Gujarat some 250 years ago. i.e 1750 to 1760
 Chauriyasi Mewada Brahmin from south Gujarat, Migrated from Chittod, Rajasthan some 800 years ago to Dharampur near Valsad. i.e. 1158 AD to 1168 AD
 Saurashtra Trivedi Mewad Brahmin
 Saurashtra Bhatt Mewada Brahmin
 Pushkarna Brahmin
 Nagar Brahmin
 Khedaval Brahmin
 Audich Brahmin
 Modh Brahmin
 Bardai Brahmin
 Girinarayan Brahmin
 Shrimali Brahman
 Anavil Brahmin
 Sidhra-Rudhra Brahmin
 Sree gauda Brahmin
 Rajgor Brahmin Basically comes from Rajeshtan 
 Prashnora Brahmin
 Kanaujiya or Kanyakumbj Brahmin migrated from kanoj,entered in kutch via sindh along with lohanas have surname Bhatt in kutch,divided as bhuvdiyas,vondhiyas,sandhliyas according to their village temple.others in Gujarat mainly found in jamnagar,morbi,junaghath and rajkot.surnames like Bhatt,Kaileyas,bhaglani,pingal,lakhlani,ghediya etc are common.
Maharashtra
 Deshastha Brahmin
 Chitpavan Brahmin (Konkanastha)
 Karhade Brahmin
 Devrukhe Brahmin
Karnataka
 Kannada Brahmins
 Babbur Kamme Brahmins
 Badaganadu Brahmins
 Deshastha Brahmin
 Havyaka Brahmin
 Hasan Iyengars
 Hebbar Iyengars
 Hoysala Karnataka Brahmins
 Karhade Brahmin
 Koota Brahmins
 Madhva Brahmins
 Mandyam Iyengars
 Mysore Iyengars
 Niyogi Brahmins
 Panchagrama Brahmin
 Sankethi Brahmins
 Shukla Yajurveda Brahmins
 Smartha Brahmins
 Srivaishnava Brahmins
 Sthanika Brahmins
 Ulucha Kamme Brahmins
 Mysore Iyers
 Ashtagrama iyers
 Mulukanadu Brahmins
 Tuluva Brahmins
 Kandavara Brahmins
 Karhade Brahmins
 Maratha Brahmins
 Padia Brahmins
 Saklapuri Brahmins
 Shivalli Brahmins
 Smartha Shivalli Brahmins
 Sthanika Brahmins
Andhra Pradesh
 Telugu Brahmins
 Niyogi Brahmins
 Vaidiki Brahmins
Tamil Nadu
 Iyengars (sub-divided into Vadakalai and Thenkalai)
 Iyers (sub-divided further into Vadama, Vathima, Brahacharanam, Ashtasahasram, Gurukkal, Dikshitar, Kaniyalar, Prathamasaki, dravida brahmins)
 Kerala
 Namboothiri Brahmins
 Kerala Iyers
 Embranthiris
 Pushpaka Brahmins (Ambalavasis}
 Sharada Brahmins
 Nagariks or the Brahmin migrants from north India
List of sub-castes
Some of the existing sub-castes from Panch-Gaur group of Brahmins are:
 Assamese Brahmins
 Brahmbhatt Brahmin
 Bengali Brahmins
 Bhargav Brahmins
 Dadhich Brahmins
 Dube Brahmins
 Gaur BrahminsMainly Adi Gaur brahman which includes Gaur,Tyagi,Pachauri,Gautam etc mainly residing in Haryana,West Uttar Pradesh and Rajasthan.
 Gautam Brahmins
 Jangid Brahmins
 Kashmiri Pandits
 Khandelwal Brahmins
 Khedaval Brahmins
 Mohyal Brahmins
 Kanyakubja Brahmins
 Kota Brahmins
 Kulin Brahmins
 Maithili Brahmins
 Rajapur Saraswat Brahmins
 Sanadhya Brahmins
 Saraswat Brahmins
 Saryupareen Brahmins
 Shakdwipi Brahmins
 Shrimali Brahmins
 Suryadhwaja Brahmins
 Tyagi Brahmins
Some of the existing sub-castes from Panch-Dravida group of Brahmins are:
 Bardai Brahmins
 Chitpavan Brahmins (Konkanasth)
 Daivajna Brahmin
 Dhima Brahmins
 Deshastha Brahmin
 Gouda Saraswat Brahmins
 Havyaka Brahmin
 Hoysala Karnataka Brahmins
 Iyers, Iyengar (Vadakalai Thenkalai )
 Kandavara Brahmins
 Kannada Brahmins
 Karhade Brahmins
 Koota Brahmins
 Koteshwara Brahmins
 Nagar Brahmins
 Padia Brahmins
 Pushpaka Brahmins (Ambalavasi Brahmins)
 Saklapuri Brahmins
 Sankethi Brahmins
 Shivalli Brahmins
 Sthanika Brahmins
 Telugu Brahmins (Vaidiki, Niyogi)
 Tuluva Brahmins www.lifecanbechanged.com

Tuesday 5 January 2016

जन्म पत्रिका का अष्टम भाव वैसे तो मोक्ष का स्थान माना जाता है। परंतु यह बिमारी का भी घर है। कुछ योग ऐसे हं जो अष्टम स्थान में प्रभावशील होकर रोग उत्पन्न करते हैं।....www.lifecanbechanged.com

जन्म पत्रिका का अष्टम भाव वैसे तो मोक्ष का स्थान माना जाता है। परंतु यह बिमारी का भी घर है। कुछ योग ऐसे हं जो अष्टम स्थान में प्रभावशील होकर रोग उत्पन्न करते हैं। कौन से हैं वे रोग आइए जानते हैं।
1- अष्टम भाव मंगल, चंद्र और शुक्र हो तो जातक सेक्स संबधी एवं हर्निया रोग से ग्रसित होता है।
2- अष्टम भाव में शुक्र हो तथा प्रथम भाव में शनि हो तो पेंशाब में घात संबधी रोग होता है। शनि यदि अष्टम भाव में हो उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि ना हो तो भी पेशाब संबधी रोग होता है।
3- अष्टम भाव में मंगल, शुक्र की युति हो तो वीर्य संबंधी रोग होता है।
4- अष्टम भाव में शनि हो तथा उस पर मंगल की दृष्टि हो तो जलोदर नाम का रोग होता है।
5- मोक्ष स्थान अष्टम में केतु अशुभ होने पर वायु गोला रोग करता है, केतु पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अल्सर भी हो सकता है।
6- अष्टम स्थान पर चंद्रमा नीच का हो, शत्रु या अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो सर्दी संबधी रोग होते हैं। हर्निया, गैस, हृदय रोग भी हो सकता है।
7- अष्टम स्थान पर नीच का मंगल राहु से युक्त हो, चंद्र कमजोर हो तो बाढ़ में बहने या जल में डूबने का खतरा रहता है।
8- अष्टम भाव में शनि या शुक्र नीच का होकर बैठा हो तथा उस पर कोई शुभ दृष्टि भी न हो तो जातक को शुगर, ब्लडप्रेशर, अपेन्डि़क्स जैसे रोग होते हैं।
शनि रोग का कारक बनता हो, जो जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है. यह और एक दर्द भी है कि राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक तो उस रोग की जांच (डायग्नोसिस) ही नहीं हो पाती है. डॉक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को क्या बीमारी है? और ऐसी स्थिति में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है. प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी रोगों से अवश्य पीड़ित होता है. कुछ व्यक्ति कुछ विशेष समय में अथवा माह में ही प्रतिवर्ष बीमार हो जाते है. ये सभी तथ्य प्राय: जन्मप्रत्रिका में ग्रहों की भागवत एवं राशिगत स्थितियों और दशा, अन्तदर्शा पर निर्भर करते हैं. इसके अतिरिक्त कई बीमारियां ऐसी हैं, जो होने पर बहुत कम दुष्प्रभाव डाल पाती हैं, जबकि कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो जब भी जातक विशेष को होती हैं, तो बहुत नुकसान पहुंचाती है. कई बार ऐसा स्थिति उत्पन्न होती है कि बीमारी होती तो हैं लेकिन उसकी पहचान भली प्रकार से नहीं हो पाती है. उन सभी प्रकार के तथ्यों का पता जातक की कुंडली को देखकर लगाया जा सकता है

Friday 30 October 2015

1) अगर परिवार में कोई परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार औषधि सेवन के पश्चात् भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो.....

1) अगर परिवार में कोई परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार औषधि सेवन के पश्चात् भी 
स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो www.lifecanbechanged.comकिसी भी रविवार से आरम्भ करके लगातार 3 दिन तक गेहूं के आटे का 
पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उबार कर जल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को 
खिला दें। अवश्य ही इन 3 दिनों के अन्दर व्यक्ति स्वस्थ महसूस करने लगेगा। अगर टोटके की अवधि में 
रोगी ठीक हो जाता है, तो भी प्रयोग को पूरा करना है, बीच में रोकना नहीं चाहिए।
2) अमावस्या को प्रात: मेंहदी का दीपक पानी मिला कर बनाएं। तेल का चौमुंहा दीपक बना कर 7 उड़द के 
दाने, कुछ सिन्दूर, 2 बूंद दही डाल कर 1 नींबू की दो फांकें शिवजी या भैरों जी के चित्र का पूजन कर, जला 
दें। महामृत्युजंय मंत्र की एक माला या बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कर रोग-शोक दूर करने की भगवान से 
प्रार्थना कर, घर के दक्षिण की ओर दूर सूखे कुएं में नींबू सहित डाल दें। पीछे मुड़कर नहीं देखें। उस दिन 
एक ब्राह्मण -ब्राह्मणी को भोजन करा कर वस्त्रादि का दान भी कर दें। कुछ दिन तक पक्षियों, पशुओं और
रोगियों की सेवा तथा दान-पुण्य भी करते रहें। इससे घर की बीमारी, भूत बाधा, मानसिक अशांति 
निश्चय ही दूर होती है।
3) अगर बीमार व्यक्ति ज्यादा गम्भीर हो, तो जौ का 125 पाव (सवा पाव) आटा लें। उसमें साबुत काले 
तिल मिला कर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा सा तिल्ली का 
तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7 
बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाए। भैंसा कहाँ मिलेगा, 
इसका पता पहले ही मालूम कर के रखें। भैंस को रोटी नहीं खिलानी है, केवल भैंसे को ही श्रेष्ठ रहती है। 
शनि और मंगलवार को ही यह कार्य करें।
4) पीपल के वृक्ष को प्रात: 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी वार से शुरू करके 7 दिन तक करें। बीमार व्यक्ति को आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।
5) घर से बीमारी जाने का नाम न ले रही हो, किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र ले 
कर उसे हांडी में पिरो कर रोगी के पलंग के पाये पर बांधने से आश्चर्यजनक परिणाम मिलता है। उस दिन
से रोग समाप्त होना शुरू हो जाता है।
6) यदि आपका बच्चा बहुत जल्दी-जल्दी बीमार पड़ रहा हो और आप को लग रहा कि दवा काम नहीं कर 
रही है, डाक्टर बीमारी खोज नहीं पा रहे है। तो यह उपाय शुक्ल पक्ष की अष्टमी को करना चाहिये। आठ 
गोतमी चक्र ले और अपने पूजा स्थान में मां दुर्गा के श्रीविग्रह के सामने लाल रेशमी वस्त्र पर स्थान दें। मां 
भगवती का ध्यान करते हुये कुंकुम से गोमती चक्र पर तिलक करें। धूपबत्ती और दीपक प्रावलित करें।
धूपबत्ती की भभूत से भी गोमती चक्र को तिलक करें। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे की 11 माला जाप
करें। जाप के उपरांत लाल कपड़े में 3 गोमती चक्र बांधकर ताबीज का रूप देकर धूप, दीप दिखाकर बच्चे के
गले में डाल दें। शेष पांच गोमती चक्र पीले वस्त्र में बांधकर बच्चे के ऊपर से 11 बार उसार कर के किसी 
विराने स्थान में गड्डा खोदकर दबा दें। आपका बच्चा हमेशा सुखी रहेगा।

Thursday 29 October 2015

रुकावटें दूर होने लगेंगी यदि किसी व्यक्ति को धन प्राप्त करने में बार-बार रुकावटें आ रही हों तो उसे यह उपाय करना चाहिए। यह उपाय 40 दिनों ......


रुकावटें दूर होने लगेंगी
यदि किसी व्यक्ति को धन प्राप्त करने में बार-बार
रुकावटें आ रही हों तो उसे यह उपाय
करना चाहिए।
यह उपाय 40 दिनों तक किया जाना चाहिए। इसे अपने घर पर
ही किया जा सकता है। उपाय के अनुसार धन
प्राप्ति मंत्र का जप करना है। प्रतिदिन 108 बार।
मंत्र: ऊँ
सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं,
श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।
इस मंत्र का जप नियमित रूप से करने पर कुछ
ही दिनों महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त
हो जाएगी और आपके धन में आ
रही यदि किसी व्यक्ति को धन प्राप्त करने में बार-बार
रुकावटें आ रही हों तो उसे यह उपाय
करना चाहिए।
यह उपाय 40 दिनों तक किया जाना चाहिए। इसे अपने घर पर
ही किया जा सकता है। उपाय के अनुसार धन
प्राप्ति मंत्र का जप करना है। प्रतिदिन 108 बार।
मंत्र: ऊँ
सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं,
श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।
इस मंत्र का जप नियमित रूप से करने पर कुछ
ही दिनों महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त
हो जाएगी और आपके धन में आ
रही रुकावटें दूर होने लगेंगी।।

सारे काम इस से हो सकते हे प्रथम ..जब कोई जटिल काम हो जो न हो रहा हो तो ..आप जो बताया जा रहा हे ....

सारे काम इस से हो सकते हेप्रथम ..जब कोई जटिल काम हो जो न हो रहा हो तो ..आप जो बताया जा रहा हे उसे आजमा कर अनुभव ले ..www.lifecanbechanged.com.जब आप सुबह उठे तो उठते बराबर सर्वप्रथम अपने दोनों हथेलियों को अपने चेहरे पर से उतार कर एक साथ जोड़ कर देखे ..फिर बिना हिले किसी से एक गिलास पानी मंग ले या रात को ही पास में रख ले क्यों की जब तक यह प्रयोग ना हो जाए तब तक किसी से बात नहीं करना हे मौन व्रत रखना हे . फिर उसमे से एक घूँट पानी जितना मुंह में आ सकता हे पिए लेकिन उसे निगले याने गले के निचे नहीं उतारे मुंह में ही रखे और जो काम करवाना हे या जो आपकी मन की इच्छा हे उसे कम से कम पांच बार दोहराए और जो देवता को आप मानते हे उनसे प्रार्थना करे ...इस दौरान आप नाक से सांस ले सकते हे .. ...और हां यह क्रिया होने के बाद आप पानी को गले के निचे उतार ले आहिस्ता आहिस्ता और फिर अपने दोनों पैरो के अंगूठे को क्रॉस याने दाहिने हाथ से बाया पैर और बाये हाथ से दाया पैर इस प्रकार छू कर अपने ललाट को स्पर्श कर उठे ...यह प्रयोग कभीसे भी शुरू कर सकते हे ...!यह प्रयोग जब तक कार्य सिद्ध ना हो तब तक याने की उतने दिनों तक .करें!
द्वितीय ....एक मंत्र हे जो बड़ा ही चमत्कारी हे इससे जेसा आप चाह रहे हे वेसा होगा पर न्यायोचित कार्य ही ...वो हे " चिमी चिमी" यह एक जादुई मंत्र हे किसी से मिलना हो वो नहीं मिल रहा हे तो घर से निकलने से लेकर उससे मिलने तक ..यह मंत्र जाप करे ..कोई गलत फहमी हो तो इसका जाप करे और मन ही मन दोहराएँ की गफलत दूर हो वो मुझे मिल जाए आदि ..याने जो कठिन लगे वो सारे काम इस से हो सकते हे ...!!
* ध्यान रहे एक बार में एक ही काम ..जब तक वो पूरा न हो दूसरा काम ना कहे ..
इन सब के अलावा एक चमत्कारी वस्तू हे "काली राई " जो हमारे रसोई घर में मसाले के डिब्बे में होती हे उसे ही एक पुडिया में रख कर घर से निकले और निकलते वक्त मेरा फलां काम सिद्ध हो ऐसा कह कर एक चुटूकी दरवाजे से निकलते वक्त गिरा कर जाएँ और जहाँ जाएं वहां भी द्वार पर गिरा दे तो अनुकूल परिस्थिति बन जाती हे और कई बार तो तुरंत ही चमत्कारी अनुभव आते हे ..
वेसे तो यह सिद्ध कर के देते हे पर मसाले के डिब्बे की भी चमत्कारी असर दिखाती हे बशर्ते श्रद्धा पूर्वक की जाए हो सकता हे एक दो बार शुरुआत में अनुभव न आये पर ५ से ७ बार में खुद ब खुद ही आता हे ..ऐसा लोगो को अनुभव आया हे जिसके आधार पर कहा जा रहा हे

दीपावली के दिन किया जाना चाहिए यदि आप दसों दिशाओं से यानी चारों तरफ से पैसा प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें....शय्या पर मंत्र जप करने के बाद दसों दिशाओं में दस-दस बार फूंक मारें।...


दीपावली के दिन किया जाना चाहिए
यदि आप दसों दिशाओं से यानी चारों तरफ से
पैसा प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें। यह उपाय
दीपावली के दिन किया जाना चाहिए।
दीपावली की रात में विधि-
विधान से महालक्ष्मी का पूजन करें। पूजन के
सो जाएं और सुबह जल्दी उठें। नींद से
जागने के बाद पलंग से उतरे नहीं बल्कि यहां दिए
गए मंत्र का जप 108 बार करें।
मंत्र: ऊँ नमो भगवती पद्म पदमावी ऊँ
ह्रीं ऊँ ऊँ पूर्वाय दक्षिणाय उत्तराय आष पूरय
सर्वजन वश्य कुरु कुरु स्वाहा।
शय्या पर मंत्र जप करने के बाद दसों दिशाओं में दस-दस बार
फूंक मारें। इस उपाय से साधक को चारों तरफ से पैसा प्राप्तwww.lifecanbechanged.com
होता है......by pt. m.d. vashisht.